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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir gse अनुयोगद्वारसूत्रे ख्येयमुत्रस्य व्याख्याविधिसमीपीकरणं, तस्य तद्विषया वा या निर्युक्तिस्तयास्तद्रूपो वा योऽनुगमः स उपोद्घातनियुक्त्यनुगमः । स चानुपद वक्ष्यमाणाभ्यां द्वाभ्यां मूळगाथाभ्याम् अनुगन्तव्यः = विज्ञेयः । मूलगाथाद्वयमेवाह - 'तं जहा - उद्दे से ' निरुक्ति के अनुसार व्याख्येय सूत्र का व्याख्याविधि के समीप करना, ऐसा है। इस उपोद्घात की जो नियुक्ति है उसका अथवा इस उपोद्घात को करनेवाली जो नियुक्ति है, उसका व्याख्यान करना या उस नियुक्तिरूप व्याख्यान करना यह नियुक्ति अनुगम का अर्थ है । इस प्रकार दोनों शब्दों को मिलाकर उपोदघातनियुक्तिअनुगम का वाच्यार्थ स्पष्ट हो जाता है। इसी विषय को सूत्रकार (हमाहिं दोहिं मूलगाहाहिं अनुगंतव्वे-तं जहा ) इन निम्नलिखित दो गाथाओं द्वारा समझाने के लिये कह रहे हैं-वे गाथाएँ ये हैं C उसे १, निदेलेअ २, निगमे ३, विसे य ४, काल ५, पुरिसे य ६, कारण ७, पच्चय ८, लक्खण ९, नए १०, समोधारणा ११, णुमए १२, |१| किं १३ कइ विहं १४ कस्स १५ कहिं १६, केसु १७, कहं १८, केच्चिरं हवइ कालं १९, कह २०, संतर २१, मविरहियं भवा २३, गरिस २४ फासण २५ निरुत्ती २६ ||२|| (सेत उबग्घायनिज्जुन्तिअणुगमे ) यहां 'वक्तव्य' पदका संबन्ध सर्वत्र लगा लेना चाहिये । तथा च उद्देश कहना चाहिये । निर्देश कहना चाहिये । (१) 'उद्देशश- सामान्य મુજખ વ્યાખ્યેયસૂત્રની વ્યાખ્યાવિધિ–સમીપ કરવી આવે છે. આ ઉપેાદૂધાતની જે નિયુકિત છે અથવા આ ઉપેદ્યાતને વિષય કરનારી જે નિયુકિત थे, तेतुं व्याख्यान કરવુ' અથવા તે નિયુ་કિતરૂપ વ્યાખ્યા કરવું આ નિયુકિત અનુગમને અથ છે. આ પ્રમાણે બન્ને શબ્દોને એકત્ર કરીને ઉપે ાત નિયુકિત અનુગમના વાચ્યા સ્પષ્ટ થઈ જાય છે, એજ વિષયને सूत्र४२ (इमा हि दोहि मूळगाहाहिं अणुगंतव्वे-तं जहा ) मा निम्न लिखित मे ગાથાઓ વડે સમજાવવા માટે કહી રહ્યા છે. તે ગાથાઓ આ છે. ( उसे १, निद्देसेअ २, निग्गमे ३, खित्तेय : ४ काल ५, पुरिसे ६, कारण ७, पच्चय ८, लक्खण ९, नए १०, समोयारणा ११, णुमए १२, ॥१॥ किं १३, कइविह १४, करस १५, कहि १६, केसु १७, कह १८, केच्चिरं हवका १९, कइ २०, संतर २१, मविरहियं २२, भवा २३, गरिस २४, फासण २५, निहत्ती २६ ||२|| से त उवग्धायनिज्जुत्तिअणुग मे ) अहीं 'वक्तव्य' पहने। समध सर्वत्र लगाउवो हमे तेभन उद्देश वा लेखे For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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