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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७७ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४८ अनुगमनामानुयोगद्वारनिरूपणम् नामस्थापनादिभेदभिन्नस्तद्विषया या निर्युक्तिस्तद्रूपस्तस्या वा ऽनुगमः, स च अनुगतः = अनुज्ञात एव । अयं भावः - अत्रैव सूत्रे प्रागावश्यक सामायिकादिपदानां नामस्थापनानिक्षेपद्वारेण यद् व्याख्यानं कृतं तेनैव निक्षेप नियुक्त्यनुगमोऽपि व्याख्यातो विज्ञेयः, तस्येवास्याऽपि व्याख्यानादिति । तथा उपोद्घातःच्या ख्यानादिति । तथा उपोद्घातनियुक्त्यनुगमः- उपोहननम् - उपोद्घातः या उत्तर- (निक्वनिज्जुन्तिअणुगमे अणुगए) नाम स्थापना आदिरूप निक्षेप के विषभूत बनी हुई जो नियुक्ति है, इस नियुक्तिरूप जो अनु गम है वह, अथवा नामस्थापना आदिरूप निक्षेप के विषयभूत बनी हुई नियुक्ति का जो अनुगम है, वह नियुक्ति अनुगम है। यह अनुज्ञात ही है । तापर्य यह कि इसी सूत्र में पहिले आवश्यक, सामायिक आदि पदों का नाम स्थापना आदि द्वारा जो व्याख्यान किया गया है, उसी से निक्षेप नियुक्ति अनुगम भी व्याख्यात हो जाता है। क्योंकि उसी व्याख्यान की तरह से इसका भी व्याख्यान है। (सेत निक्खेवनिज्जुतिअणुगमे) इस प्रकार से निक्षेप नियुक्ति अनुगम का अर्थ है । (से किं तं उबग्घायनिज्जुत्ति अणुग मे ?) हे भदन्त ! उपोद्घातनियुक्तिअनुगम का अर्थ क्या है ? उत्तर- ( उवग्धायनिज्जुन्ति अणुग मे ) उपोद्घातनियुक्ति अनुगम में जो उपोदघात शब्द है, उसका अर्थ 'उपोदहननम् उपोद्घातः इस उत्तर-- (निक्खेव निज्जुत्तिअणुगमे अणुगए) नाम स्थापना साहि३य નિક્ષેપને વિષયભૂત થયેલ જે નિયુકિત છે, આ નિયુ`કિતરૂપ જે અનુગમ છે, તે અથવા નામ સ્થાપના આદિરૂપ નિક્ષેપના વિષયભૂત બનેલ નિયુકિતના જે અનુગમ છે. તે નિયુ"કિત અનુગમ છે. આ અનુજ્ઞાત જ છે. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે એજ સૂત્રમાં પહેલાં આવશ્યક સામાયિક આદિપનું નામ સ્થાપના આદિ નિક્ષેપ વડે જ વ્યાખ્યાન કરવામાં આવેલ છે, તેથી જ નિક્ષેપ નિયુકિત અનુગમ પણ વ્યાખ્યત થઇ જાય છે. કેમકે તે વ્યાખ્યાનની प्रेम मानुं पशु व्याख्यान छे. ( से तं निक्खेव निज्जुत्तिअणुअगमे) या प्रभा નિક્ષેપ નિયુકિત अनुगमन अर्थ छे. (से कि त उवग्धायनिज्जुत्ति अनुगमे १) लत ! उपोधात निर्युति अनुगमनो अर्थ थे। हो ? उत्तर- ( उवग्धायनिज्जुत्तिअणुग मे ) उपोद्दधात नियुक्ति अनुगममां के (चेोद्दूघात शब्द छे, तेना अर्थ' 'उपाद् हननम् उपोद्घातः' मा नियुक्ति अ० ९५ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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