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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org nagarafar टीका सूत्र २४५ क्षपणानिरूपणम् टीका--' से किं तं' इत्यादि 'अथ का साक्षपणा ?' इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति-क्षपणा अपचयो निर्जरा वा । सा नामक्षपणा स्थापनाक्षपणा द्रव्यक्षपणा भावक्षपणेति चतुर्विधा । चतुविधानानां भेदप्रभेदसहितानां व्याख्या पूर्ववत् स्वयं बोध्या । इत्थं सभेदा क्षपणा निरूपितेति सूचयितुमाह-सैपा क्षपणेति । इत्थं च भेदोपभेद सहितः समस्त saroorat निक्षेपः प्ररूपित इति मूचयितुमाह- स एष ओघनिष्पन्न इति । अक्षीणादिषु त्रिष्वपि भावे विचार्यमाणेऽध्ययनमेवाऽऽयोजनीयमिति ।। ०२४५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir હવે સૂત્રકાર ક્ષપણાનું નિરૂપણ કરે છે. 'से कि' त' उझवणा १' इत्यादि । अब सूत्रकार क्षपणा का निरूपण करते हैं-'से किं तं ज्झवणा ?' इत्यादि । शब्दार्थ - - (से किं तं झवणा ?) हे भदन्त ! पूर्वप्रक्रान्तक्षपणा का क्या स्वरूप है ? | ( झवणा) उत्तर -- 'क्षपणा' नाम 'अपचय' अथवा 'निर्जरा' का है। यह क्षपणा (चवित्रहा पण्णत्ता) चार प्रकार की कही गई है । (तं जहा ) जैसे - (नामज्झवणा, ठवणज्झरणा, दव्वज्झवणा, भावज्झवणो) नामक्षपणा, स्थापना क्षपणा, द्रव्पक्षपणा, और भावक्षपणा | भेद प्रभेद सहित इन चारों की व्याख्या पहिले के समान जाननी चाहिये । इस प्रकार से निक्षेप के भेद ओघनिष्पन्न के भेद स्वरूप, क्षपणा का वर्णन जानना चाहिये। इस वर्णन के समाप्त हो जाने पर भेद प्रभेद सहित समस्त ओघनिष्पन निक्षेप का वर्णन समाप्त हो जाता है। अक्षीण, आय और क्षपणा इनका स्वरूप जब अच्छी प्रकार से विचार लिया ७५७ For Private And Personal Use Only शब्दार्थ - (से कि त ज्झत्रणा) हे लहांत ! पूर्व प्रान्त क्षपणानु *१३५ ठेवु छे ? (झवणा ) 'क्षपणा' नाम 'अययय' अथवा 'निर्भरा'नुं छे. या क्षपा (चउत्रिहा पण्णत्ता) यार प्रहारनी उडेवामां आवेली छे (तजहा) प्रेम (नामज्ञवणा, ठत्रणज्झत्रणा, दव्वज्झत्रणा, भावज्झत्रणा) नाम क्षयथा, સ્થાપના ક્ષપણા, દ્રવ્ય ક્ષપણા અને ભાવ ક્ષપણા' ભેદ પ્રભેદ સહિત આ ચારેચારની વ્યાખ્યા પહેલાં જેવી જ સમજવી જોઇએ. આ પ્રમાણે નિક્ષેપના ભેદ, આદ્યનિષ્પન્નના ભેદ સ્વરૂપ, ક્ષપણાનુ વણ ન જાણવુ જોઇએ, આ વધુન પૂરુ થવાથી ભેદ, પ્રભેદ સહિત સમસ્ત એઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપનું વણુન સમાપ્ત થઈ જાય છે. મક્ષીજી, આય, અને ક્ષપણા આ બધાનું સ્વરૂપ જ્યારે સારી રીતે ન
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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