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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४६ मनुयोगद्वारसूत्रे काशश्रेणिः। तदेतद् ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्याक्षीणम् । तदे. सस् नो आगमतो द्रव्याक्षीणम् । तदेतत् द्रव्याक्षीगम् । अथ किं तत् भावाक्षीणम् ? भावाक्षीणं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-आगमतश्च नो आगमतश्च । अथ किं तत् आगसे है-(सव्वागास सेढ़ी, से तं जाणयसरीर भवियसरीर वहरिते दचझीणे) सर्वाकाश श्रेणि जो है, वही ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण है। तात्पर्य यह है कि-'लोक और अलोकरूप आकाश यहां सर्वाकाश पद से गृहीत हुआ है। इन दोनों की जो प्रदेश पंक्ति है, वह सर्वाकाश श्रेणि है । उसमें यदि एक २ प्रदेश का भी अपहार किया जावे तो भी, वह कभी खाली नहीं हो सकती है। इसलिये यह ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर से व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीणरूप से कही गई है। इसमें द्रव्यता आकाश र के अन्तर्गत होने के कारण है । (से तं नो ओगमी दव्यज्झीणे) इस प्रकार यह नो आगम की अपेक्षा द्रव्य अक्षीण का स्वरूप है । (से तंदव्यज्झीणे) इस प्रकार द्रव्य अक्षीण के तीनों भेदों के स्वरूप वर्णन से द्रव्य अक्षीण का समस्त स्वरूप निरूपित हो जाता है। (से कि त भाव. ज्झीणे ?) हे भदन्त ! भाच अक्षीण का क्या स्वरूप है ? उत्तर--(भावज्झीणे दुविहे पण्णत्ते) भाव अक्षीण दो प्रकार का कहा है । (तं जहा) जैसे-(आगमोघ नो आगमो य ) एक आगम (सव्वागाससेढी, से त' जणय परोरभवियसरीरवइरित्ते दवझीणे) साथ શ્રેણિ જે છે, તે જ જ્ઞાયકશી ભવ્ય શરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય અક્ષીણ છે. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે “લેક અને અલેકરૂપ આકાશ અહી સકાશ પદથી ગૃહીત થયેલ છે. એમાં બનેની જે પ્રદેશ પંક્તિ છે, તે સર્વકાશ શ્રેણિ છે. તેમાં જે એક એક પ્રદેશને પણ અ૫હાર કરવામાં આવે તે પણ તે ખાલી થઈ શકે તેમ નથી એથી આ જ્ઞાયક શરીર અને ભવ્ય શરીરથી વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય અક્ષીણરૂપમાં કહેવામાં આવેલ છે. આમાં દ્રવ્યતા १२ द्र०यनी मत डा म. छे. (से त' नो आगमओ व्वझणे) ॥ प्रभा । नासामनी मयेक्षाये द्रव्य पक्षी २३३५ छे. (से त दव्यज्झीणे) या प्रमाणे द्रव्य पक्षीराना १९५ होना २१३५ वर्णनथी द्रव्य अक्षीयनु समस्त २१३५ नि३पित २४ ५ (से कि त भावज्झीणे १) હે ભેદત ! ભાવ અક્ષણનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर :-(भावज्झीणे दुविहे पण्णत्ते) मा यक्षीणना में प्रा। छ :(तजहा) २ (आगमओ य नो आगमओ य) मामी भने For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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