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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४३ सम्प्रत्यक्षीणनिरूपणम् क्षीणम् । अथ किं तत् भन्यशरीद्रमाक्षीणम् ?, भव्यशरीरद्रव्याक्षीणं-यो जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तो यथा द्रव्याध्ययन यावत् तदेतत् भव्यशरीरद्रध्या. क्षीणम्। अथ किं तत् ज्ञायकशरीरमव्यशरीव्यतिरिक्तं द्रव्याक्षीणम् ?, सर्वा ज्ञायकद्रव्यभक्षीण पद लगाकर उस अर्थ की सति बैठा लेनी चाहिये। इसी प्रकार से अन्यत्र भी ऐसा ही जानना चाहिये । (से कितं भवियसरीरदब्यज्झीणे ?) हे भदन्त ! भव्यशरीर द्रव्यप्रक्षीण का क्या स्वरूप है ? (भवियसरीरदवाज्झीणे) भव्यशरीर द्रव्य अक्षीण का स्वरूप इप्त प्रकार से है कि-(जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते जहा दव्यज्झयणे जाव से तं भवियसरीरबारित्तेदनशपणे) इन पदों का अर्थ भी भव्यशरीर द्रव्यआवश्यक में कर दिया गया है-सो उमी माफिक जानना चाहिये। क्योंकि द्रव्य अध्ययन का वर्णन करते समय लिखा है कि द्रव्यअध्ययन में के ज्ञायकशरीरद्रव्यअध्ययन का और भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन का स्वरूप द्रव्यावश्यक के इन भेड़ों के अनुसार ही जानना चाहिये । (से कि त जाणयसरीरभवियसरीर वहरित्ते व्वज्झीणे ?) हे भदन्त ज्ञायक शरीर और भव्यशरीर इन से व्यतिरिक्त द्रव्यअक्षीण का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(जाणयसरीरभविघसरीरवदरित्ते दव्यज्झोणे) ज्ञायकशरीर, भपशरीर इन से व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण का स्वरूप इस प्रकारસોજિત કરીને તે અર્થની સંગતિ બેસાડી લેવી જોઈએ. આ प्रमाणे भी स्थाने men देवु नये (से कि त भवियसरीरदवझीणे) 8 महत! मय शरी२ द्रव्यमशीनु स्व३५ यु छ ? (भवियसरीरदव्वज्झीणे) भव्य शरी२ द्रव्यमक्षीनु ११३५ मा प्रमाणे छ । (जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जहा दव्यज्झयणे जाव से त. भवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झीणे) मा पहोनी म पY सव्य शरीर द्रव्य मावश्यमा સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલ છે. તે તે મુજબ જ જાણી લેવું જોઈએ. કેમકે દ્રવ્ય અધ્યયનનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કરતી વખતે લખવામાં આવેલ છે કે દ્રવ્ય અધ્યયનમાંના જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્ય અધ્યયનનું અને ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય અધ્યય ननु २१३५ द्रव्यापश्यना मा । भुश onell से नये. (से कि त जाणयसरीरभवियसरीरवइगित्ते दव्वज्झीणे १) , महत! ज्ञाय शरीर भने ભવ્ય શરીર એનાથી વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય અક્ષણનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर :- (जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झीणे) ज्ञाय शरी२, ભવ્ય શરીર એમનાથી વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય અક્ષણનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે, अ० ९४ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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