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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८५ भावप्रमाणनिरूपणम् तत्पुरुषे हि उत्तरपदार्थप्राधान्यं बोध्यम् । तथा-अनुग्रामम्-ग्रामस्य पश्चादिति विग्रहः । 'अव्ययं विभक्तिः ' इत्यादिनाऽव्ययीभावसमासः । एवम् 'अनुनदिकम्' इत्यापि बोध्यम् । अव्ययीभावे हि पूर्वपदार्थस्य प्राधान्यं बोध्यम् । तथा-सरूपयोद्धयोः पदयोः सरूपाणां बहूनां वा पदानां समासे 'सरूपाणामेकशेषएकविभक्तों इत्यनेनैकमवशिष्यान्यपदलोपे सति अवशिष्यमाणं पदं द्वित्वस्य बहुतस्य च वाचर्क भवति । तस्य द्विवचनान्तता बहुवचनान्तता वा भवति । यथा-पुरुषश्च पुरुषश्व तीर्थ पर कौवे की तरह ग्राह्य अग्राह्य के विवेक से शून्य होकर रहता है, वह इस प्रकार से कहा जाता है। ये तीर्थ काक आदि उदाहरण तत्पुरुष समास के हैं । तत्पुरुष समास में उत्तर पदार्थ की प्रधानता रहती है। (से किं तं अव्वई भावे) हे भदन्त ! अव्ययी भाव समास क्या है ? उत्तर-(अम्बई भावे) अव्ययीभाव समास इस प्रकार से होता है-(गामस्स पच्छा अणुगामं, एवं अणुणइयं, अणुफरिसं, अणुचरियं) ग्रामस्य पश्चात्-अनुग्रामम् , इसी प्रकार से अनुनादिकम् , अनु. स्पर्शम् , अनुचरितम् में जानना चाहिये। ( से तं अव्वई भावे समासे) इस प्रकार यह अव्ययीभाव समास है । (से किं तं एगसेसे ?) हे भदन्त ! एकशेष समास क्या है ? ___उत्तर-(एगसेसे ) एक शेष समास इस प्रकार से है-(जहा एग्गो पुरिसो तहा यहवे पुरिसा जहा बहवे पुरिसा तहा एग्गो पुरिसो, जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा, છે. જે વ્યક્તિ તીર્થક્ષેત્રમાં કાગડાની જેમ ગ્રાહ્ય-અગ્રાહાના વિવેકથી રહિત થઈને રહે છે, તેને આ પ્રમાણે કહેવામાં આવે છે. આ તીર્થજા વગેરે ઉદાહરણે તપુરૂષના છે. તપુરૂષ સમાસમાં ઉત્તર પદાર્થની પ્રધાનતા રહે છે. (से कि त अव्वई भावे) 3 R ! अन्यथा आप सभास ने उपाय ? उत्तर-(अव्बई भावे) अव्ययीभाव समास २मा प्रमाणे छ-(गामस्स पच्छा अणुगामं एवं अणुणइयं अणुफरिस, अणुचरिय) ग्रामस्य पश्चात् अनुग्रामम्, । प्रमाणे मीn GIR२Q। मेवी शते छे-अनुनदिकम्, अनुस्पर्शम्, अनुचरितम्, (से त अव्वई भावे समासे) मा प्रमाणे । अव्ययी भाव समास छ. (से कि त एगसेसे ?) महन्त ! शेष समास ने उपाय ? उत्तर-(एगसेसे) मे शेष समास मा प्रमाणे छ. (जहा एग्गो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा जहा बहवे पुरिसा तहा एग्गो पुरिम्रो, जहा एगो करेसावणो तहा वहवे कारिसावणा, जहा बहवे कारीसावणा, तहा, एगो करिसावणो. For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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