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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४० समवतारद्वारनिरूपणम् .. समतारेग तु चतुर्भागिकाऽष्टाविंशत्यधिकै शतपलमानायाममाणिकायां समवतरति आत्मभावेच । तथा-अर्द्धमाणिकाऽपि आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, उभयसमवतारेण तु षट्पश्चाशदधिकशतद्वयमानायामर्द्धमाणिकायां समवतरति आत्मभावे चेति । इत्थं तदुभयव्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारो निरूपित इति मूचयितुमाह-स एष ज्ञायक-शरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतार इति । इत्थं नो आगमतो द्रव्यसमवतारस्य त्रिविधोऽपि भेदो निरूपित इति सूच. यितुमाह-स एष नो आगमतो द्रव्यसमवतार इति । इत्थं सभेदो द्रव्यसमवतारो निरूपित इति सूचयितुमाह-स एष द्रव्यसमवतार इति ।मु० २४०॥ है और तदुभय समवनार की अपेक्षा अर्धमाणी में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है (अद्वप्राणी आयसमोयारेणं आयभावे समो. यर तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोगरइ आयभावे य) इसी प्रकार से जो अर्धमानी है वह आत्मसमवतार की अपेक्षा से आत्मभाव में रहती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा से मानी में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है १२८ पल की अर्धमानी होती है और २५६ पल की मानी होती है । (से तं जाणयसरीरभवियसरीर पर. रित्ते दबसमोयारे) इस प्रकार यह पूर्व प्रक्रांत वह ज्ञायक शरीर भव्य शरीर से व्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार होता है । (से तं नो आगमओ दव्वस०) इस प्रकार से सूत्रकार ने नो आगम की अपेक्षा लेकर द्रव्य. समवतार के तीन प्रकार के भेदों का निरूपण किया। इसके निरूपित हो जाने पर (से तं दनसमोयारे ) द्रव्यसमवतार पूर्णरूप से निरूपित हो चुका ।। सू० २४० ॥ સમવતારની અપેક્ષા અર્થમાણીમાં પણ રહે છે અને આત્મભાવમાં પણ રહે छ. (अद्धमाणी, आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अद्ध माणीए समोयरइ आयभावे य) मा प्रमाणे २ भानी छ ते मामसमतारनी અપેક્ષાએ આત્મભાવમાં રહે છે અને તદુભય સમવતારની અપેક્ષાએ માનીમાં પણ રહે છે. અને આત્મભાવમાં પણ રહે છે. ૧૨૮ પલની અર્ધમાની डाय छे. अने. २५६ पसनी मानी हाय छे. (से तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्ते दव्वसमोयारे) मा प्रमाणे मा पूर्व प्रान्त ते ज्ञाय शरी२ मध्यशरीरथी व्यतिरित द्र०य सभवतार हाय छे. (से तं नो आगमओ दव्वस०) આ પ્રમાણે સૂત્રકારે ને આગમની અપેક્ષાએ દ્રવ્ય સમવતારના ત્રણ २ना सानु नि३५ यु छ. माना नि३५थी (से. तं दव्वसमोयारे.) દ્રવ્ય સમવતાર પૂર્ણ રૂપથી નિરૂપણ થઈ ગયો છે. એ સૂત્ર ૨૪૦ अ० ९० For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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