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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र २३९ अर्थाधिकारद्वारनिरूपणम् अथ उपक्रमस्य पञ्चमं द्वारम् अर्थाधिकारं निरूपयतिमूलम्-से किं तं अस्थाहिगार? अत्थाहिगारे-जो जस्स अज्झयणस्स अस्थाहिगारो, तं जहा-"सावजजोगविरई, उकितण गुणवओ य पडिवत्ती। खलियस्त निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥१॥” से तं अस्थाहिगारे॥सू०२३९॥ ____ छाया-अथ कोऽसौ अर्थाऽधिकारः १, अर्थाधिकार:-यो यस्य अध्ययनस्य अर्थाऽधिकारः, तथा-सावधयोगविरति उत्कीर्तनं गुणवतश्च प्रतिपत्तिः । स्खलितरय निदना व्रणचिकित्सा गुणधारणा चैव' । स एषोऽर्थाधिकारः ।मु०॥ २३९॥ वक्तव्यता ही है-पर समयवक्तव्यता नहीं है । (सेत्तंवत्तव्वया) इस प्रकार यह वक्तव्यता विषयक कथन है। सू. २३८ ॥ अब सूत्रकार उपक्रम का पांचवां द्वार जो अधिकार है उसका निरूपण करते हैं-'से किं तं अत्यहिगारे ?' इत्यादि । __ शब्दार्थ-(से किं तं अस्थाहिगारे ?) हे भदन्त ! पूर्व प्रकान्त अर्था. धिकार क्या है ? उत्तर--(अत्याहिगारे) पूर्व प्रकान्त वह अर्थाधिकार इस प्रकार से है कि (जो जस्स अज्झयणरस) जो जिस सामायिक आदि अध्यः यन का (अस्थाहिगारो) अर्थ विषयक अधिकार हैं, वही अथाधिकार हैं। (तं जहा) जैसे (साबजजोग विरई, उक्कित्तणगुणवओय पडिबत्ती, खलियस्स निंदणा, वणतिगिच्छगुणधारणाचेव) इस गाथा का नथी. सन २१समय५२समय१४०यता नथी. (सेत्त वत्तध्वया) 40 प्रभाये આ વકતવ્યતા વિષયક કથન છે. ૨૩૮ - હવે સૂત્રકાર ઉપક્રમનું પાંચમું દ્વાર જે અર્વાધિકાર છે. તેનું नि३५५ ४३ छे:-'से कि तं अत्थाहिगारे ?' त्याह ___महाय--(से कि तं अस्थाहिगारे १) 3 महन्त ! पूzird माधिકાર શું છે? उत्तर--(अत्याहिगारे) पूर्व प्रान्त ते मथापि२ प्रमाणे छ (जो जरस अज्झयणस्स) २२ १m सामायि कणेरे अध्ययननी (अत्थाहिगारो) माविषय मधिर छे, ते अधि४२ छ. (तं जहा) २भ है (घावज्जजोगविरई, उकित्तणं गुणवओय पडिवत्ती, खलियरसनिंदणा, वणतिगिच्छ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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