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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३८ वक्तव्यताद्वारनिरूपणम् ऽन्यापि व्याख्या कार्येति । सैपा स्वसमयवक्तव्यता बोध्येति । तथा-परसमय. वक्तव्यता एवं विज्ञेया, यथाहि-यत्र खलु वक्तव्यतायां परसमयः अन्यमत सिद्धान्त आख्यायते यावदुपदर्यते । यथा सूत्रकृताङ्गस्य प्रथमेऽध्ययने संति पंचमहन्भूया, इहमेगेसि आहिया। पुढवी आऊ तेऊ वा, वाऊ आगासपंचमा ॥१॥ एए पंचमहन्भूया, तेभो एगोत्ति आहिया । अह तेसिं विणासेण, विणासो होइ देहिणो ॥२॥ छाया-सन्ति पञ्च महाभूतानि, इह एकेपाम् आख्यातानि । पृथिवी आपस्तेजो वा वायुराकाशः पञ्चमः ॥१॥ एतानि पश्च महाभूतानि तेभ्य एक इति आख्यातम् । अथ तेषां विनाशेन विनाशो भवति देहिनः ॥२॥ इति ॥ प्रकट की गई हैं-इसी प्रकार से इन पदों की और भी प्रकार से व्याख्या कर लेनी चाहिये-परन्तु व्याख्या करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि-'उसमें सिद्धान्त से विरोध न आवे। (से किं तं परसमय: वत्तव्वया) हे भदंत ! परसमयवक्तव्यता क्या है ? उत्तरः-(परसमयवत्तव्यया) पर समयवक्तव्यता इस प्रकार से है (जस्थ णं परसमए आधविज्जा, जाव उवदंसिज्जइ) जिस वक्तव्यता में परसमय-अन्यमत का सिद्धान्त कहा जाता है यावत् उपदर्शित किया जाता है। (से तं परसमययत्तश्या ) वह परसमयवक्तव्यता है। जैसे सूत्रकृनाङ्ग के प्रथम अध्ययन में यह लोकायति कों का सिद्धान्त इन दो गाथाओं द्वारा कहा गया है-कि-'संति पंचमहन्भूया' इत्यादि વિકસ' વગેરે પદની આ વ્યાખ્યા ફકત સમજાવવા માટે જ પ્રકટ આવેલ છે. આ પ્રમાણે આ પદેની બીજી રીતે પણ, વ્યાખ્યા કરી લેવી જોઈએ. પરંતુ વ્યાખ્યા કરતી વખતે આ વાત ધ્યાનમાં રાખવી જોઈએ કે “તેમાં સિદ્ધાંતનાં साथै विशेष न डाय' (से कि तं परसमयवत्तव्वया) महन्त ! ५२समय વક્તવ્યતા શું છે ? उत्तर-( परसमयवत्तवया ) ५२समय१तव्यता मा प्रभारी छ. (जत्थ णं परसमए आधविनइ, जाव उबदसिज्जइ) २ पतव्यतामा ५२समय અન્યમતના સિદ્ધાન્તનું કથન હાય યાવતુ ઉપદર્શિત કરવામાં આવે છે. (से तं परसमयवत्तव्यया) ५२समय १०यता छ. म सूत्रतांना प्रथम અધ્યયનમાં કાતિકને સિદ્ધાન્ત આ બે ગાથાઓ વડે કહેવામાં આવે छ. है 'संति पंचमहाभूया' या . थासान। म मा प्रमाणे छ. मा For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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