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अनुयोगद्वारसूत्रे नक्षत्रक्रममाश्रियात्र पाठो बोध्यः, अतो नास्ति दोष इति । एतानि कृत्तिकादी. न्यष्टाविंशतिनक्षत्राणि अग्न्याधष्टाविंशतिदेवताभिरधिष्ठितानि, अतः कश्चित् कृत्तिकाधन्यतमनक्षत्रजातस्य तन्नक्षत्राधिष्ठातुरग्न्यायन्यतमस्य नामाश्रित्य नामस्थापनं करोति, तद्दर्शयितुमाह-'अथ किं तद् देवतानाम' इत्यादि । तत्र देवता. नाम-अग्निदेवतासु जात आग्निकः, अग्निदत्त इत्यादि बोध्यम् । एवं रोहिण्यादि हैं उस समय कृत्तिका रोहिणी इत्यादि क्रम ही देखा जाता है। इसलिये इस प्रकार के नक्षत्र क्रम को आश्रित करके पाठ विन्यास में कोई दोष नहीं है। (से तं नक्खत्तनामे ) इस प्रकार यह नक्षत्र नाम हैं ये कृत्तिका आदि २८ नक्षत्र अग्नि आदि २८ देवताओं से अधिष्ठित हैं । इसलिये यदि कोई इन कृत्ति का आदि किसी एक नक्षत्र में उत्पन्न होता है तो उसका नामस्थापन उस नक्षत्र के अधिष्ठायक अग्नि आदि किसी एक देवता के नाम को लेकर किया जाता है-इसी बात को सूत्रकार यों दिखलाते हैं-(से कि तं देवयाणामे) हे भदन्त ! वह देवता नाम क्या है-अर्थात् देवताओं को आश्रित करके जो नामस्थापित किया जाता है, वह कैसा होता है ?
उत्तर-(देवयाणामे) वह देवतानाम इस प्रकार से है-(अग्गि देवयाहिं जाए, अग्गिए) क्यों कि, वह अग्निदेवता में उत्पन्न हुआ है इसलिये ये आग्निक (अग्गिदिण्णे) अग्निदत्त (अग्गिसम्मे) अग्निशर्मा (अग्निधम्मे) अग्निधर्म (अग्गिदेवे) अग्निदेव (अग्गिरक्खिए) अग्निવામાં આવે છે, તે વખતે કૃતિકા રહિણી વગેરે કમજ જોવામાં આવે છે, એથી આ જાતના નક્ષત્રક્રમને આધારભૂત માનીને પાઠવિન્યાસ કરવામાં આવે तो त्रुटि न गयाय (से तं नक्खत्तनामे) मा प्रमाणे ॥ नक्षत्राना નામે છે. આ કૃતિકા વગેરે ૨૮ નક્ષત્ર અગ્નિ વગેરે ૨૮ દેવતાઓથી અધિષ્ઠિત છે. એથી જે કઈ આ કૃતિકા વગેરે કોઈ એક નક્ષત્રમાં ઉત્પન્ન થાય તે તેનું નામ તે નક્ષત્રના અધિષ્ઠાયક અગ્નિ વગેરે કે એક દેવતાના નામ પરથી રાખવામાં આવે છે. એ જ વાતને સૂત્રકાર આ પ્રમાણે સ્પષ્ટ કહે છે. (से कि तं देवयाणामे) सन्त ! हेवता नाम शुछ? सटसे देवताએના આધારે જે નામે સ્થાપિત કરવામાં આવે છે તે કેવાં હોય છે?
6त्तर-(वयाणामे) ते देवता नाम मा प्रमाणे छे. (अग्गि देवयाहिं जाए, अग्गिए) मत मनि टेवतामा पनि येस छ. मेथी त मानि (अग्गिदिण्णे) मनिहत्त, (अग्गिसम्मे) निर्मा, (अगिधम्मे) भनिधी, (अग्गिदेवे) निव, (अग्गिदासे) मनिहास, (अग्गिसेणे) मनसेन, (अग्गि
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