________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२८ वसतिदृष्टान्तेन नयप्रमाणम्
छाया-अथ किं तत् वसतिदृष्टान्तेन ?, वसतिदृष्टान्तेन स यथानामक: कोऽपि पुरुषः कश्चित् पुरुषं वदति, कुत्र वं वससि ?, तम् अविशुद्धो नैगमो भणति-लोके वसामि । लोकः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ऊचलोकः अधोलोका तिर्यकलोकः, तेषु सर्वेषु त्वं वमसि ? विशुद्धो नैगमो भणति-तिर्यक्लोके वसामि । तिर्यक्लोके जम्बूद्वीपादिकाः स्वयंभूरमणपर्यवसानाः असंख्येयाः द्वीप
इस प्रकार प्रस्थक के दृष्टान्त से नय का स्वरूप निरूपण करके अब वसति के दृष्टन्त से उसका निरूपण सूत्रकार करते हैं'से किं तं वसहिदिट्टतेणं' इत्यादि ।
शब्दार्थ-से कितं वसहिदिटुंतेणं) हे भदन्त !वह वसति दृष्टान्त क्या है ? कि-'जिससे नय के स्वरूप का ग्रहण होता है ? (वसहिदिई तेणं) वसतिदृष्टान्त से नय स्वरूप का प्रतिपादन इस प्रकार से है-(से जहा नामए केइपुरिसे कंचिपुरिसं वएज्जा कहिं तुवं वससि ?) जैसे किसी पुरुषने किसी एक पुरुष से पूछा कि तुम कहां रहते हो ? (तं अविसुद्धो णेगमो भणह) तब उसने अविशद्ध नैगमनय के मतानुसार होकर कहाकि (लोगे वसामि) में लोक में रहता हूँ। (लोगेतिविहे पण्णत्ते) तब पूछनेवालेने फिर पूछा कि लोक तो तीन प्रकार का है । (तं जहा) जैसे-(उडुलोए, अहोलोए,तिरियलोए) उप्रलोक, अधोलक, तिर्यक्लोक (तेसु सव्वेसुतुवं
આ પ્રમાણે પ્રસ્થકના દૃષ્ટાતથી નયના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરીને હવે વસતિના દષ્ટાન્તથી સૂત્રકાર તેનું નિરૂપણ કરે છે.
'से कि त वसहिदिद्रुतेणं' इत्यादि।
शा-(से कि त वसहिदिवतेणं) के महन्त ! ना 43 नय २१३५नु' ७ थाय छे. सति शान्तनु २१३५ यु छ ? (वसहिदि,तेणं) ५सति दृष्टान्तथी नय २१३५नु प्रतिपादन मा प्रमाणे छे. (से जहा नामए केइपुरिसे कंचि पुरिसं वएज्जा कहिं तुवं वससि ?) भ । ५२२ से ५२पने प्रश्न यो तम या २७ छ। ? (त' अविसुद्धो णेगमो भणइ) त्यारे तेरे अविशद्वनगमनयन। मतानुसार वाम भाव्य (लोगे वसामि) २९ छु. (लोगे तिविहे पण्णत्ते) त्यारे प्रश्न भी पा२ प्रश्न यो तो त्र प्रा२न छे. (तौं जहा) मई (उड्डलोए अहोलोए तिरियलोए) Baras अपायो, भने तिय४४ (ठेसु सव्वेसु तुवं वससि) तो तमे मा तो मां से! छे! ? (विसुद्धो णेगमो भणइ) त्यारे विशुद्धनय भुण तेथे ४ (तिरियलोए वसामि) तिय मां २ छ (तिरियलोए जंबू दीवाइया
अ०७३
For Private And Personal Use Only