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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२१ अनुमानप्रमाणनिरूपणम् ५०९ णम्, मृत्पिण्डो घटस्य कारणं न घटो मृत्पिण्डकारणम् । इति । अयं भावःततः पटस्य कारणं भवन्ति, न तु पटस्तन्तुकारणम् । यतः पूर्वमनुपलब्धस्य पटस्य तन्तुमत्तायामेोपलब्धिर्भवति । तन्तूनां तु पटाभावेऽप्युपलम्भो दृश्यते । ननु या कवित् निगः पुरुषः पटवावेन संयुक्तानपि तन्तून् क्रमेण वियोजयति तदा पटोऽपि तन्तूनां कारणं भवत्येव ? इति चेदाह - तन्तुदशायां पटस्य सत्वेनोप कारण है, कट वीरणा का कारण नहीं हैं। मिट्टी का पिण्ड घट का कारण है -घट मिट्टी के पिण्ड का कारण नहीं है । तात्पर्य कहने का यह है कि तन्तु पट के कारण होते हैं, पट तन्तुओं का कारण नहीं होता है क्योंकि आतानविनानीभूत बने हुए तन्तुओं को पहिले पट की उपलब्धि नहीं होती - यदि पट की उपलब्धि होती है तो, वह आतो. नविनानीभूत बने हुए तन्तुओं की सत्ता में ही होती है । परन्तु ऐसी बात तन्तुभों में नहीं है क्योंकि पट के अभाव में भी तन्तुओं की उपलब्धि होती है । शंका - जिस समय कोई निपुण पुरुष पटरूप से संयुक्त हुए तन्तुओं को क्रम क्रम करके उस पर से अलग करता जाता है, तब उस स्थिति में पट भी तन्तुओं का कारण होता ही है- फिर आप क्यों ऐसे कहते हैं कि-'पट तन्तुओं का कारण नहीं होता है ? उत्तर - तन्तुदशा में पटका अस्तित्वरूप से उपलब्ध नहीं होता है, इसलिये पट तन्तुओं का कारण नहीं होता है । जो पट अपने अस्तित्व સાદડીનું કારણ છે. સાદડી વીરણાનું કારણ નથી શ્રૃત્પિડ ઘટતુ કારણ છે, ઘટમુપિંડનું કારણ નથી. તાત્પ કહેવાનું' આ પ્રમાણે છે કે ત'તુ પટનું કારણ હોય છે. પટ તંતુએનું કારણ નથી. કેમકે આતાનવિતાનીભૂત બનેલા તંતુએની પહેલાં પરની ઉપલબ્ધ થતી નથી, જો પટની ઉપલબ્ધિ થાય છે તેને આતાનવિતાનીભૂત થયેલા તતુએની સત્તામાં જ થાય છે. પર‘તુ એવી વાત 'તુઓમાં નથી, કેમકે પટના અભાવમાં તતુઓની ઉપલબ્ધિ થાય છે. શ'કા--એ સમયે કાઈ નિપુણ પુરૂષ પટરૂપથી સયુકત થયેલ તંતુઓને ક્રમશ: તે પટથી અલગ પાડતા જાય, ત્યારે તે સ્થિતિમાં પટ પણ ત ંતુએનું કારણ હાય જ છે. પછી તમે શા માટે એમ કહેા છે કે પટ ત ́તુઓનું કારણુ થઈ શકે નહિ ? For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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