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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१८ भावप्रमाणनिरूपणम् छाया-अथ किं तत् भावपमाणं ?, भावप्रमाणं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथागुणप्रमाणं, नयप्रमाणं, संख्याममाणं ॥ मु० २१८ ॥ टीका-'से कि तं भावप्पमाणे' इत्यादि शिष्यः पृच्छति-अथ किं तद् भावप्रमाणम् ? इति । उत्तरयति-भावप्रमाणम्भवनं भावः वस्तुनः परिगामो ज्ञानादिवर्णादिश्व, प्रमितिः प्रमाणम् , प्रमीयतेऽने. नेति प्रमाणम् , प्रमीयते यत्तद् वा प्रमाणम् । भाव एव प्रमाणं भावममाणम् । प्रमाणशब्दस्य भावसाधनपक्षे वस्तुपरिच्छेदोर्थः । वस्तुपरिच्छेदहेतुत्वाद् भावस्य प्रमाणता बोध्या। तद् भावप्रमाणं गुणपमाणनयप्रमाण-संख्याप्रमाणेति त्रिविधम्।।मू०२१८॥ अब मूत्रकार भावप्रमाण का निरूपण करते हैं-- 'से किं तं भावप्पमाणे' ? इत्यादि । शब्दार्थ--शिष्य पूछता है कि (से किं तं भावप्पमाणे ?) हे भदन्त ! पूर्व निरूपित वह भावप्रमाण क्या है ? उत्तर--(भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते) भावप्रमाण तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा) वे उसके प्रकार ये हैं-(गुण पमाणे, नयप्पमाणे, संखप्पमाणे) एक गुगप्रमाण, दूसरा नयप्रमाण और तीसरा संख्याप्रमाण। ___ भावार्थ--'भवनं भावः' यह भाव शब्द की व्युत्पत्ति है। इसका अर्थ होना है 'ऐसा है । अर्थात् जो होता है, वह 'भाव' है । यह भाव वस्तु का परिणाम रूप पड़ता है। वस्तु का परिणाम ज्ञानादिरूप अथवा वर्णादिरूप होता है। प्रमिति का नाम प्रमाण है, अथवा वस्तु जिस હવે સૂત્રકાર ભાવ પ્રમાણુનું નિરૂપણ કરે છે – “से कि त' भावपमाणे" त्यादि। शहाथ-शिष्य प्रश्न ४२ छ । (से कि त भावप्पमाणे ?) मत! પૂર્વનિરૂપિત ભાવ પ્રમાણ શું છે? उत्तर-(भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते) भाव प्रमाण १ २नु प्रज्ञ थयेर छे. (त' जहा) ते २ मा प्रभारी छे. (गुणप्पमाणे, नयप्पमाणे, संखप्पमाणे) प्रथम प्रमाण, मी नयप्रभाए भने तृतीय समयाअभा. भावार्थ:-'भवन भाव:' मा मावशण्टनी व्युत्पत्ति न ' હોવાપણું” થાય છે. એટલે કે જે હોય છે તે “ભાવ” છે. આ ભાવ વરતુના પરિણામ રૂપ હોય છે. વસ્તુના પરિણામ જ્ઞાનાદિરૂપ અથવા વર્ણાદિરૂપ હોય છે પ્રમિતિનું નામ પ્રમાણ છે, અથવા વસ્તુ જેના વડે જણાય તે પ્રમાણ છે, __ अ० ६१ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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