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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८० अनुयोगद्वारसूत्रे वैक्रियशरीरवद् बोध्यानि । प्रकृतमुपसंहरन्नाह - तदेतत्सूक्ष्मं क्षेत्रपल्योपममिति । इथं सूक्ष्मव्यवहारोभयविधमपि क्षेत्रपल्योपमं प्ररूपितमिति सूचयितुमाह-तदेतत् क्षेत्रमिति । इत्थं परयोपमं निरूपितमिति सूचयितुमाह = तदेतत् पल्योपम मिति । तदेव 'समयावळियमु हुना' इत्यादिगाथानिर्दिष्टास्तदुपलक्षिताश्च सर्वेऽपि कालविभागा निरूपिता इति सूचयितुमाह- तदेव द्विभागनिष्पन्नमिति । इत्थं च सभेदं कालप्रमाणं निरूपितमिति सुवयितुमाह-वदेतत् काल माणमति ॥ पृ. २१७॥ अथ भावप्रमाणं निरूपयति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम् - से किं तं भावप्यमाणे ? भावप्यमाणे- तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - गुणप्पमाणे नयप्यमाणे संखप्यमाणे ॥सू०२१८॥ जैसा अनंत है । (तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चैव वेउच्चिसरीरा तहा माणिकवा) तैजस और कार्मण शरीर इनके ही वैक्रियशरीरों के जैसा जानना चाहिये । ( से तं सुद्धमे खेत्तप लिओ मे से तं खेत्तपलिओवमे-से तं पलिओ मे से तं विभागनिष्कण्णे-से तं कालप्यमाणे) इस प्रकार यह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप है । इसके निरूपित हो हो जाने पर व्यावहारिक और सूक्ष्म के भेद से दो भेदवाले क्षेत्रपत्योपम का स्वरूप पूर्णरूप से निरूपित हो जाता है अतः क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप भी निरूपित हो चुका है । 'समयावलियमुहुत्ता' इत्यादि गाथा द्वारा निर्दिष्ट समस्त समयादिरूप काल के विभाग भी निर्दिष्ट हो चुके । इस प्रकार इनके निर्दिष्ट हो जाने पर सभेद काल प्रमाण का कथन समाप्त हो चुका ॥ सू० २१७॥ अनंत छे. (तेयगकम्मयसरीरा जहा एएसिं चेव वेउव्वियसरीरा तहा भाणि - यव्वा) तैक्स भने अशु शरीर सेभना वैडिय शरीरानी प्रेम लगुवां ये. (से तं सुडुमे खेत्तपलिओ मे - से तं खेत्तवलिओ मे से तं पलिओबमेसे तं विभागनिष्फण्णे - से तं कालप्पमाणे) या प्रमाणे सूक्ष्म क्षेत्रपल्यो भनु સ્વરૂપ છે. આ નિરૂપિત થઇ જવાથી વ્યાવહારિક અને સૂક્ષ્મના ભેદથી ખે ભેદવાળા ક્ષેત્રપલ્યેાપમનું સ્વરૂપ પૂર્ણરૂપથી નિરૂપિત થઈ જાય છે, તેથી क्षेत्रपयत्यमनु स्व३५ प नि३पित थ युं छे. "समयावलियमुहुत्ता" ઇત્યાદિ ગાથા વડે નિર્દિષ્ટ સમસ્ત સમયાદિ રૂપ કાળના વિભાગે પણ નિર્દિષ્ટ થઈ ચૂકયા છે. આ રીતે એમના નિર્દિષ્ટ થવાથી સભેદ કાળ પ્રમા ણુનું કથન સ ́પૂર્ણ થઈ ગયુ છે. ાસૂ૦ ૨૧૭૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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