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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ मनुयोगद्वारस्त्रे अथ व्यन्तरादीनामौदारिकादिशरीराणि दर्शयति मूलम्-वाणमंतराणं ओरालियसरीरा जहा नेरइयाणं । वाणमंतराणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा! वेउबियसरीरा दुविहा पण्णता, तं जहा-बधेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जे ते बल्लिया ते णं असंखेजा, असंखिज्जाहिं यदि होते हैं तो जघन्य से ये एक, दो अथवा तीन तक होते हैं। (उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं) और उत्कृष्ट से सहस्रपृधवस्व तक हो सकते हैं। (मुक्केल्लया जहा ओहिया) मुक्त आहारक शरीर लघुत्तर अनंत भेदवाले होते हैं । (तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालिया तहा भाणियवा) मनुष्यों के तैजस कार्मक शरीरों का प्रमाण इनके औदारिक शरीरों के प्रमाण के जैसा जानना चाहिये। भावार्थ--इस सूत्र द्वारा सूत्रकारने मनुष्यों के पांचों शरीरों का प्रमाण कहा है। यद्यपि एक मनुष्य को एक साथ चार शरीर तक ही हो सकते हैं-पांच शरीर एक साथ नहीं होते। परन्तु यहां जो पांच शरीरों का होना कहा है और उनका प्रमाण स्पष्ट किया गया है सो इसका तात्पर्य यह है कि नाना मनुष्यों की अपेक्षा मनुष्यों के एक साथ पांच शरीर तक हो सकते हैं । सू० २१६ ॥ २ डाय छे तो धन्यथा समे। मे, मे मया 3 डीय छ. ( उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) मने उत्कृष्टनी अपेक्षा सर पृथप सुधी हाश छे. (मुक्केल्लया जहा भोहिया) भुत भाडा२४ शरी। साधुत२ सनत हवा डाय छे. (तेयगकम्मसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालिया तहा भाणियव्या) મનુષ્યોના તૈજસ કાર્મક શરીરનું પ્રમાણ એમના દારિક શરીરના પ્રમાनीभ यु नये. ભાવાર્થ-આ સૂત્ર વડે સૂત્રકારે મનુષ્યોના પંચ શરીરનું પ્રમાણ કહેલું છે. જે કે એક મનુષ્યના એકી સાથે ચાર શરાજ થઈ શકે છે. પાંચ શરીરે એકી સાથે હતાં નથી, પરંતુ અહીં જે પાંચ શરીરના અસ્તિત્વ વિષે કહેલું છે, અને તેમનું પ્રમાણ સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે, તે તેનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે અનેક મનુષ્યની અક્ષા મનુષ્યના એકી સાથે પાંચ શરીરે સુધી થઈ શકે છે. સૂત્ર ૨૧૬ છે For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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