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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१६ मनुष्याणामौदारिकादिशरीरनिरूपणम् ४६५ काळतः संख्येथानि बद्धवैक्रिपशरीराणि बोध्यानी त । वै क्रियशरीरापहारस्तु निदनिमात्रं बोध्यः । वस्तुतस्तु न तान्यप हिन्ते । अमेवार्थ दर्शयति-नो चैव खलु अपहतानि स्थुरिति । मुक्त क्रियशरीराणि मुक्तौघिौदारिकशरीरवद् बोध्यानि । तथा-एतेषामाहारकशरीराणि बद्धमुक्तेति द्विविधानि । द्विविधान्यप्येतानि औधिकवद् बोव्यानि । जसकार्यकशरीराणि तु एतेषामौदारिकशरीरवद् बोध्यानीति ॥ ० २१६ ॥ व्यतीत होते हैं । यह जो वैक्रियशर का अपहार कहा गया है वह एक उदाहरण मात्र है । वास्तव में इनका अपहार नहीं होता है। यही बात सूत्रकार ने (जो चेव णं अवहिया मिया) इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की है । (मुकल्लया जहा ओहिया ओरालियाणं मुक्केल्लया तहा भाणिया) मुक्त वैक्रियशरीरों का प्रमाण मुक्त सामान्य औदारिक शरीर के जैक्षा अनंत जानना चाहिये। (मणुस्साणं भंते ! केवइया आहारगसरीस पण्णता ?) हे भदन्त ! मनुष्यों के आहरक शरीर, प्रमाण में कितने कहे गये हैं ? (गोयना!) हे गौतम ! (आहारगसरीरा दुविहा पण्णत्ता) आहारक शरीर दो प्रकार के कहे हुए हैं। (तं जहा) जैसे बल्लियाश उल्लया य) एक बद्ध आहारक शरीर और दूसरे मुक्त आहारक शरीर । (तत्य णं जे ते बद्धेल्लया तेणं सिय अस्थि सिय नत्थि) इनमें जो वे बद्ध आहारक शरीर है वे मनुष्यों के होते भी हैं और नहीं भी होते है। (जह अस्थि जहन्नेणे एक्को वा दो वा तिणि वा થઈ જાય છે. જે આ વૈક્રિયશરીરૂને અપહાર કહેવામાં આવ્યો છે. તે ફકત એક ઉદાહરણ માત્ર છે. ખરેખર એમને અપાર સંભવતે નથી એ જ વાત सूत्रा (णो चेव णं अवहिया सिया) मा सूत्रपा8 43 ५४८ ४२वामा पानी (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियाणं मुक्केल्लया तहा भाणियव्वा) भुत डिय શરીરનું પ્રમાણ મુક્ત સામાન્ય બૌદારિક શરીરની જેમ અનંત જાણવું જોઈએ. (मगुस्सा णं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता ?) 3 महत! मनुध्याना साहा२४ शरी। प्रभामा ८i वामां माया ? (गोयमा !) 3 गीतम! (आहारगसरीरा दुविहा पण्णत्ता) माहा२४ शीमेन वामां मायां छे. (तं जहा: है (बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य) मे मद्ध २।२४ शरीर भने भुत माहा२४ २२२ (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया तेणं सिय अस्थि सिय णस्थि) मारे ५ मा २४ शरी। छ त मनुष्य २ डाय ५५ ४२॥ भने नथी ५५ तi (जइ अस्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिणि वा) अ० ५९ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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