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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ अनुयोगद्वारसूत्रे वैक्रियशरीराणि आहारकशरीराणि च यथा पृथिवीकायिकानां तथा भणितव्यानि। तैजसकामकशरीराणि यथा पृथिवीकायिकानां तथा भणितव्यानि। वनस्पतिकायिकानाम् औदारिकवैक्रियाऽऽहारकशरीराणि यथा पृथिवीकायिकानां तथा भणि तव्यानि । बनस्पतिकायिकानां भदन्त ! कियन्ति तैजसजरीराणि प्रज्ञतानि ? आहारक शरीर यहां होते नहीं हैं और मुक्त आहारक शरीर अनंत कहे गये हैं सो इसी प्रकार से वायुकायिक जीवों में भी मुक्त वैक्रिय शरीरों की तथा मुक्त आहारक शरीरों की संख्या जाननी चाहिये । (तेयगकम्मयसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्या) वायुकायिक जीवों में बद्ध मुक्त तैजस और कार्मग इन दो शरीरों की संख्या का प्रमाण पृथिवीकायिक जीवों में कहे गये इन शरीरों की संख्या के समान जानना चाहिये। पृथिवीकायिक जीवों में बद्ध मुक्त तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण क्रमशः असंख्यात और अनंत कहा है, वैसा ही प्रमाण यहां वायुकायिक जीवों के इन दोनों प्रकार के शरीरों के विषय में भी जानना चाहिये। (वणस्सइकाइयाणं ओरालियवेउ. प्रियाहारगप्तरीरा जहा पुढधिकाइयाणं तहा भाणियन्वा) वनस्पतिकायिक जीवों के औदारिक, वैक्रिय, एवं आहारक शरीरों को पृथिवीकायिक जीवों के इन शरीरों के समान समझना चाहिये। (वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइया तेयगकम्मयसरीरा पण्णत्ता-गोयमा! આહારક શરીરે અહીં દેતા નથી અને મુકત આહારક શરીરે કહેવામાં આવ્યાં છે, તો આ પ્રમાણે વાયુકાયિક જીવેમાં પણ મુકત વૈક્રિયશરીરની જેમ भाडा२४ शरीनी सध्या omegal ने . (तेयगकम्मयसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियवा) पायु4ि3 वोमा , भुत तस भने કાર્મણ આ બે શરીરની સંખ્યાનું પ્રમાણ પૃથિવીકાયિક જીમાં કહેવામાં આવેલાં આ શરીરોની સંખ્યાની બરાબર જાણવું જોઈએ પૃથિવીકાયિક છમાં બદ્ધ, મુકત, તેજસ અને કાશ્મણ શરીરોનું પ્રમાણ કમશઃ અસંખ્યાત અને અનંત કહેવામાં આવ્યું છે. તેવું જ પ્રમાણ અહીં વાયુકાયિક જીના આ બને २शरीराना विष ५५५ M ने मे. (वणस्सइकाइयाणं ओरालिय वेउव्वियआहारगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्वा) वनस्पतिशय જીવોના ઔદારિક વૈક્રિય અને આહારક શરીરને પૃથિવીકાયિક જીવોના આ शरीशनी स४॥ सम य . (वणस्सइकाहयाणं भंते ! केवइया तेयगकम्मरीश पण्णता गोयमा ! तेयासरीरा दुविहा पण्णत्ता-जहा ओहिया For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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