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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगहारो ___ छाया-नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! औदारिकशरीराणि द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-वद्धानि च मुक्तानि प। तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खल्ल न सन्ति । तत्र खलु यानि तानि मुक्तानि तानि यथा औधिकानि औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । नैर । इस प्रकार पांच प्रकार के शरीरों का सामान्यरूप से कथन करके अब सूत्रकार नारकादिचतुर्विशतिदंडक में विशेषरूप से उनकी प्ररूपणा करते हैं--'नेरइया णं भंते ! केवड्या' इत्यादि । शब्दार्थ--(भंते !) हे भदन्त ! (नेरइयाण) नारक जीवों के (केवइया) कितने (ओरालियसरीरा पण्णत्ता) औदारिक शरीर कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (ओरालियसरीरा दुषिहा पण्णत्ता) औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं (पद्धेल्लया य मुक्केल्लया य) एक बद्ध और दूसरे मुक्त। (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया तेणं णत्थि) इनमें जो बद्ध औदारिक शरीर हैं, वे तो नारक जीवों के नहीं होते हैं । क्योंकि नारक जीव वैक्रिय शरीरवाले होते हैं, इसलिये औदारिक बन्धन का अभाव होने के कारण उनके बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते हैं । बद्ध औदारिक शरीर मनुष्य और तियश्च के ही होते हैं । (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्या) तथा जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, वे जिस प्रकार से सामान्य मुक्त औदारिक शरीर कहे गये हैं-वैसे આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના શરીરનું સામાન્ય રૂપથી કથન કરીને હવે સૂત્રકાર નારકાદિ ચતુર્વિશતિ દંડકમાં વિશેષ રૂપથી તેની પ્રરૂપણ કરે છે– "नेरइयाणं भंते ! केवइया" त्याह शाय-(भंते !) 3 d! (नेरइयाण) ना२४ वाना (केवइया) tea (ओरालियसरीरा पण्णत्ता) मोहरि शरी। डेवामा मा०यां छे ? (गोयमा !) 3 गौतम! (ओरालियसरीरा दुविहा पण्णता) महरि शरीर २. पान ४ामा मा०यां छे. (तंजहा) २ मा प्रमाणे छे. (बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य) ४ प भने भी भुत (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया वेणं णस्थि) भाभा २ मा मोहा२ि४ शरी२ छ, त तो ना२४ २ त नयी કેમકે નારક જીવ વૈક્રિય શરીરવાળા હોય છે, એથી ઔદારિક બંધનના અભાવથી તેમને બદ્ધ ઔદ્યારિક શરીર મનુષ્ય અને તિર્યંચોને જ હોય છે. (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा) For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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