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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनामनिरूपणम् २७ 3 एवायं विज्ञेोऽसावचनखादिति । एतानि नामानि प्रतिपक्षपदेन बोध्यानि । ननु नोगणादस्य को भेदः ? इति चेदाह - नोगणं हि कुन्तादिप्रवृत्तिनिमित्ताभावमात्रमादाय प्रवर्धते इदं तु प्रतिपक्षधर्मवाचकत्वमादायेत्यनयोर्भेद इति नास्ति दोषः । इदमुपसंहरन्नाह - तदेतत् मतिपक्षपदेनेति । अथ किं तत् प्रधानतया ? प्रधानस्य भावः प्रधानता तथा यन्नाम निष्यते तत् किं किं विधम् ? इति प्रश्नः । उत्तरयति - प्रधानतया - ' अशोकवनम्' इत्यारभ्य 'शालिवनम्' इत्यन्तं जो व्यक्ति बहुत ही अधिक असंबद्ध बोलता है, लोग उसे 'अभाषक ' कहते हैं, क्योंकि इस के वचन सारविहीन होते हैं। ये नाम प्रतिपक्षपद से जानना चाहियें । शंका- नो गौण पद से इस में क्या अन्तर है ? उत्तर - नोगौण जो पद है, वह कुन्तादि की प्रवृत्ति के निमित्त के अभाव मात्र को लेकर प्रवृत्त होता है । परन्तु यह प्रतिपक्ष के धर्म का वाचक जो शब्द है उसको लेकर प्रवृत्त होता है । इस प्रकार से इन दोनों में भेद है । ( से तं पडिवक्खपणं) इस प्रकार यह प्रतिपक्षपद से निष्पन्न हुआ नाम है। (से किं तं पाहण्णयाए) हे भदन्त । प्रधानता से जो नाम निष्पन्न होता है, वह किस प्रकार होता है ? उत्तर --- ( पाहण्णयाए) प्रधानता से जो नाम निष्पन्न होता है, वह इस प्रकार का होता है- (असोगवणे सत्तपगवणे चपगवणे चुअवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छुवणे दखवणे सालिवणे - से तं पाहण्णयाए ) અસંબદ્ધ ખેલે છે, લેકે તેને 'भाषा' हे छे. प्रेम सेना वयन अर्थ. વિહીન હાય છે, એ નામે પ્રતિપક્ષ પદેથી જાણવાં જોઈએ. શ’કા–ના ગૌણ પદ કરતાં આમાં શે। તફાવત છે. ઉત્તર-ના ગૌણ જે પદ છે, તે કુન્તા–િપ્રવૃત્તિ-નિમિત્તના અભાવ માત્રને લઇને પ્રવૃત્ત થાય છે. પણ આ પ્રતિપક્ષના ધર્મ'ના વાચક જે શબ્દ छेतेने प्रवृत्त होय छेप्रमाणे तेथे जन्नेमा ३२४ छे. ( से तं पडिवक्खपरणं) मा प्रमाणे प्रतिपक्षपढथी निष्यन्न तं पाहण्णयाए ) डे लहन्त ! પ્રધાનતાથી જે તે કેવા પ્રકારના હોય છે ? For Private And Personal Use Only थयेस नाम छे. ( से कि નામ નિષ્પન્ન થાય છે उत्तर--(पाहृष्णयाए ) प्रधानताथी ने नास निष्यन्न प्रहार होय छे - (जसोगवणे सत्तपण्णवणे संपवणे चुअवणे वणे उच्णे दखवणे साविणे से तं पाहण्णयाए) अशोवन, सप्तयालुवन, थाय छे, ते या नागवणे पुन्नाग
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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