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अनुयोगद्वारसूत्रे शिवादीनि विशेषविषयाणि नामानि प्रदर्शितानि । सम्प्रयविशिष्टानि यानि नामानि तान्याह-यो रक्तकः सोऽलक्तक इत्युच्यते । यो रक्तपणों भवति स एव अलक्तका अरक्तवर्ण इत्युच्यते । रलयोरभेदात्-अक्तकाऽयक्त केति शब्दद्वयं बोध्यम् । तथायद् लावुलाति आदत्ते प्रक्षिप्तं जलादि वस्तु इति लाबु-पात्रम् , तदेव अलाबुतुम्बकम् इत्युच्यते । तथा-यः सुम्भक =शुभ्रवर्णकारी, स एव कुमुम्भक इत्युच्यते । आळपन्=अत्यर्थेमसमञ्जस भाषमाणो विपरीतभाषक-भापका विपरीत विरुद्ध अभाषक इत्युच्यते । लोके हि यो बहसंबद्धं प्रलपति तं जनाः कथयन्ति-अभापक प्रयोग में लाते हैं । क्यों कि वे लोग ऐसा मानते हैं कि अम्ल शब्द का उच्चारण करने पर मदिरा नष्ट हो जाती है । इस प्रकार ये शिवादिक नाम विशेष अर्थ को विषय करने वाले नाम हैं । अब सूत्रकार जो सामान्य नाम हैं, उन्हें कहते हैं-(जे रत्तए से अलत्तए जे लाउए से अलाउए जे सुंभए से कुसुभए, आलावंते विवलीयभा. सए) जो रक्त होता है, वह 'अलत्ता' ऐसा कहा जाता है अर्थात् जो रक्तवर्ण होता है वही अलक्तक-अरक्तवर्ण ऐसा कहा जाता है "रलयोरभेदात्" इस परिभाषा के अनुसार 'अर तक' और 'अलक्तक' ये दोनों समान शब्द हैं। तथा-जो लावु-प्रक्षिप्त जलादि वस्तु को अपने में ठहराता है, वह पात्र लाघु कहलाता है। वही 'अलावु'-कहा जाता है। तथा-जो सुम्भक-शुभवर्णकारी-होता है, वही 'कुसुम्भक' ऐसा कहा जाता है। जो पहुन असमंजम बोलता हैवह भाषक से विपरीत बोलने से अभाषक कहा जाता है। लोक में
તેઓ એમ માને છે કે અમ્લ શબ્દના કથનથી મદિરા નષ્ટ થઈ જાય છે. આ પ્રમાણે આ શિવાદિક નામો વિશેષ અને સ્પષ્ટ કરનારા નામે છે. હવે सत्र २ रे सामान्य नाम छ तमनु जयन ४२ छे-(जे इत्तए से अलत्तए जे लाउए से अलाउए जे सुंभए से कुसुभए, आलावंते विवलीयभासए) २ २४त હોય છે, તે અલકૂતક કહેવાય છે. એટલે કે જે રક્તવર્ણ હોય છે તે જ અલ इत म२५त उपाय . "रलयोरभेदात्" मा परिभाषा भुराम
१२४त' मने 'मत' मा पन्ने | स२॥ छे. तमासा - પ્રક્ષિપ્ત જલાદિ વસ્તુને પોતાના વડે સ્થિર કરે છે. તે પાત્ર “લાબુ’ કહેવાય छ, त 'महाभु' उपाय छे. तेमा सुभा- 11-डीय छ, तर કસંભક” આ પ્રમાણે કહેવાય છે. જે બહુજ અસમંજસ લે છે તે ભાષકથી વિપરીત બોલવાથી અભાષક કહેવાય છે. લેકમાં જે વ્યક્તિ બહુ જ
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