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भानुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०९ द्रव्यस्वरूपनिरूपणम् भंते ! कि संखिज्जा असंखिज्जा अर्णता ? गोयमा! नो संखिज्जा ‘नो असंखिज्जा अणंता। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-नो
संखिज्जा नो असंखिज्जा अर्णता ? गोयमा! असंखेज्जा गेरइया असंखेज्जा असुरकुमारा जाव असंखेज्जा थणियकुमारा असंखिज्जा पुढवीकाइया जाव असंखिज्जा वाउकाइया अणंता वण्णस्सइकाइया, असंखेज्जा बेइंदिया जाव असंखिज्जा चउरिदिया असंखिज्जा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, असंखिज्जा मणुस्सा असंखिज्जा वाणमंतरा असंखिज्जा जोइसिया असं. खिज्जा वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से एएणऽट्रेणं गोयमा! एवं वुचइ-नो संखिज्जा नो असंखिज्जा अणंता ॥सू० २०९॥
छाया-कतिविषानि खलु भदन्त । द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-जीवद्रव्याणि च अजीवद्रव्याणि च । अजीवद्रव्याणि
- अब सूत्रकार इस बात को कहते हैं कि जो पहिले ऐसा कहा गया है कि-'सूक्ष्म क्षेत्र पल्यापम एवं सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम से दृष्टिवाद में द्रव्यों की गणना की जाती है सो वहां कितने प्रकार के द्रव्य हैं इस बात को सूत्रकार कहते हैं. . “काविहा णं भंते दव्वा पण्णत्ता" इत्यादि।
शब्दार्थ-(भते) हे भदन्त ! (दवा) द्रव्य (काविहाणं) कितने प्रकार के (पण्णत्ता) कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहा पण्णत्ता) द्रव्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हुए हैं। (तं जहा) वे उसके प्रकार से हैं-(जीव दव्या य) एक जीव द्रव्य आर दूसरा (अजीव वा य) अजीव द्रव्य ।
હવે સૂત્રકાર આ વાતને સ્પષ્ટ કરે છે કે, જે પહેલાં આ પ્રમાણે કહેઆવ્યું છે કે સૂવમ ક્ષેત્રપલપમ તેમજ સૂક્ષમ ક્ષેત્રસાગરોપમથી દષ્ટિવાજમાં દ્રવ્યોની ગણના કરવામાં આવે છે, તે ત્યાં કેટલા પ્રકારનાં દ્રવ્ય છે?
“कइविहा गं भंते ! व्वा पण्णत्ता" त्याहशा---(भंते!) त! (दवा) द्र०य। (काविहाणं) टा
ना (पण्णत्ता) वामi माया छ' (गोयमा!) ३ गौतम । (दुविहा पण्णत्ता) द्रव्ये. मे मारना प्रशस थये। छे. (तंजहा) तारे। मा प्रमाणे 2. (जीवदव्वा य) : १ द्रव्य भने द्वितीय (अजीव दरवाय) १ ० (अजीवदव्वाणं) मल द्रव्य (भंते !) 3 महत!
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