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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनामनिरूपणम्
टीका- 'से कि तं' इत्यादि
अथ किं प्रतिपक्षपदेन ? इति शिष्य प्रश्नः। उत्तरयति-प्रतिपक्षपदेन विवक्षितवस्तुधर्मस्य विपरीतो धर्मः प्रतिपक्षस्तद्वाचकं यत्पदं तेन यन्नाम निष्पद्यते तदेवं विज्ञेयम्-नवेषु-नवीनेषु ग्रामाकरनगरखेटकर्बटमडम्बद्रोणमुखपट्टणाश्रमसं. बाधसन्निवेशेषु-तत्र-ग्रामः-वृतिवेष्टितः, आकरः सुवर्णरत्नाद्युत्पत्तिस्थानम् , नगरम् अष्टादशकरवर्जितम् , खेट-धूलिपाकारपरिक्षिप्तम् , कर्बर्ट-कुनगरम् , मडम्बं= सार्द्धकोशद्वयान्तामान्तररहितम् , द्रोणमुखं जलस्थलपथोपेतो जननिवासः, ___उत्तर-(पडिवखपएणं ) विवक्षित वस्तु के धर्म का जो विप. रीत धर्म है, वह प्रतिपक्ष शब्द का वाच्यार्थ है। इस प्रतिपक्ष का वाचक जो पद है, उस पद से जो नाम निष्पन्न होता है वह प्रतिपक्षपद निष्पन्न नाम है। वह इस प्रकार से है-(नवेसु गामागरणयरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंबाहसन्निवेसेसु) नवीन, वृति वेष्टितस्थान रूप ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संबाह, और सन्निवेश इनके बसाये जाने पर मंगल के निमित्त ( असिवा सिवा ) अशिवा की जगह 'शिवा' ऐसा शब्द कहते हैं। जहां चारों ओर कांटों आदि की बाड़ लगी रहती है, उसे 'ग्राम' कहते हैं । सुवर्ण रत्न आदि की जो उत्पत्ति का स्थान होता है, वह 'आकर' कहलाता है। १८ प्रकार के कर से जो मुक्त होता है, वह 'नगर' कहलाता है। जिस की चारों ओर धूलि का कोट होता है, वह 'खेट' कहलाता है। कुत्सित जो नगर होता है, वह 'कर्बट' कह
उत्तर-(पडिवक्ख प एण) विवक्षित परतुना भने २ विपरीत ध छ, તે પ્રતિપક્ષ શબ્દને વાચ્યાર્થ છે. આ પ્રતિપક્ષનું વાચક જે પદ છે, તે પદથી २ नाम निपन्न थाय छ, (नवेसु गामागरणयरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंवाहसन्निवेसेसु) नवीन वृत्ति ष्टित स्थान ३५ श्राम, ५ ४२, नगर, पेट, ४, मम, दामु पत्तन, माश्रम, स भने सन्निवशने सावधामा मा छे त्यारे भ निमित्त (असिवा सिवा) 'शि. વાને સ્થાને “શિવા એ શબ્દ ઉચ્ચારિત કરવામાં આવે છે. જ્યાં ચોમેર કાંટાઓ વગેરેની વાડ કરવામાં આવે છે તેને ગ્રામ કહે છે સુવર્ણ, રત્ન વગેરે જ્યાં ઉત્પન્ન થાય છે. તે સ્થાન “આકર” કહેવાય છે અઢાર જાતના ટેકસ (કર) થી જે મુક્ત હોય છે તે “નગર” કહેવાય છે. જેના મેર માટીનો કોટ હોય છે તે “ખેટ” કહેવાય છે. જે નગર કુલિત હોય છે તે
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