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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगर्यान्द्रका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थितिनिरूपणम् ३३९ गौतम ! जघन्येन पञ्चविंशति सागरोपमाणि, उत्कर्षेण षड्वंशति सागरोपमाणि । मध्यममध्यमवेयकविमानेषु खलु भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता? गौतम ! जघन्येन पडूविंशति सागरोपमाणि उत्कर्षेण सप्तविंशति सागरोपमाणि। मध्यमोपरितनग्रैवेयकविमानेषु खलु भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सप्तविंशति सागरोपमानि उत्कर्षेण अष्टाविंशति सागगई है ? ( गोयमा ! जहणेणं पण्णवीसं सागरोवमाइं उक्कोसेण छन्चीस सागरोवमाई) हे गौतम ! वहां पर देवों की स्थिति जघन्य से २५ सागरोपम की और उस्कृष्ट से २६ सागरोपम की कही गई है। (मज्झिममज्झिम्रगेवेज्जगविमाणेसु र्ण भंते ! देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) मध्यम मध्यम ग्रेवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णण छन्त्रीसं सागरोवमाई. उक्कोसे णं सत्तावीसं सागरोवमाई) है गौतम! वहाँ पर देवों की स्थिति जघन्ध से तो २६ सागरोपम की कही गई है और उत्कृष्ट से २७सागरोपमकी है। (मज्झिम उवरिमगेवेज्जगविमाणेसुणं भंते ! देवाणकेवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! मध्यमउपरितन ग्रेवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (गोयमा! जहण्णेग सत्तावीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइ) हे गौतम ! वहां पर जघन्यस्थिति तो २७ सागरोपम की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति २८ सागरोपम की है। (उवरिमहे हिमगेवेज्जगविपण्णवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण छब्बीसं सागरोवमाई) 3 गौतम! त्यां દેવોની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ ૨૫ સાગરોપમ જેટલી અને ઉત્કૃષ્ટની अपेक्षा २१ सागरामनी छ. (मज्झिममझिमगेवेज्जगविमाणेसुण भते । देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) मध्य मध्यम अवय विमानाभा देवानी स्थिति । जनी प्रज्ञा थयेकी छे ? (गोयमा! जहण्णेणं छब्बीसं सागरो वमाई उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाई) 3 गौतम ! त्यो वानी स्थिति જઘન્યની અપેક્ષાએ તો ૨૬ સાગરોપમ જેટલી કહેવામાં આવી છે અને Gटनी मपेक्षा २७ सागरेश५म सी अवाम मावी छे. (मज्झिम उपरिमगेवेज्जगविमाणेसु णं भते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !) हे ભરંત ! મધ્યમ ઉ૫રિતન વેયક વિમાનમાં દેવેની સ્થિતિ કેટલા કાળની प्रशस ययेकी छे ? (गोयमा ! जहण्णेण सत्त वीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं अट्टा. वीसं सागरोवमाई) 3 गौतम ! त्यां धन्य स्थिति तो २७ साश५मनी भने स्थिति २८ सागरे।५मानी उमा भावी छे. (उपरिमहेट्ठिमगेवेजगविमाणेसु For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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