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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारस्ते सागरोपमाणि, उत्कर्षेण दशसागरोपमाणि । एवं कल्पे कल्पे कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ?, गौतम ! एवं भणितव्यं-लान्तके जघन्येन दश सागरोपमाणि उत्कर्षेण चतुर्दशमागरोपमाणि । महाशुक्रे जघन्येन चतुर्दश सागरोपमाणि, उत्कर्षेण सप्तदशसागरोपमाणि । सहस्रारे जघन्येन सप्तदशसागरोपमाणि, कितनी आयु कही गई है ? (गोयमा ! जहणे णं सत्तसागरोक्माई उक्का सेणं दलसागरोवमाइं) हे गौतम ! ब्रह्मलोक में देवों की आयु जघन्य से तो सात सागरोपम की और उत्कृष्ट से दश सागरोपम की कही गई है। (एवं कप्पे २ केवयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! एवं भाणियन्वं) इसी प्रकार से प्रत्येक कल्प में कितनी २ आयु कही गई है ऐसा प्रश्न कर लेना और उसका हे गौतम ! उत्तर इस प्रकार से जानना कि (लंनए जहन्नेणं दस सागरोवमाइं उक्कोसेणं चउद्दससागरोबमाई) लान्तक कल्म में जघन्य से दश सागरोपम की है और उत्कृष्ट से १४ सागरोपम की है । (महासुक्के जहन्नेणं च उद्दससागरोवमाई उक्कोसेणं सत्तरस लागवमाई) महाशुक्र में जघन्य स्थिति १४ सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति १७ सागरोपम की है । (सहस्सारे जहण्णेणं सत्त रससोगरोयमाई, उक्को सेणं अट्ठारसलागरोषवाई) सहस्त्रार कल्प में जघन्य आयु १७ सागरोपम की है जऔर उत्कृष्ट आयु १८ सासारोपम की है। (आणए जहन्नेणं अट्ठारससागरोचमाई, उक्कोसेणं गूगवीसं सागरोवमाइं) आनतकल्प में जघन्य आयु अठारह १८ सागरोपम की कही है और उत्कृष्ट आयु १९ उन्नीस सागरोपम की है । (पाणए जहण्णेणं वाभा मा०यु छे. (गोयमा ! जइण्णं सत्त सागरोवमाई उक्कोसेणं दस सागरोवमाई है गौतम ! " झम हुनु अायु वन्यनी अपेक्षा यो सात ૭ સાગરોપમનું અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ ૧૦ સાગરોપમનું કહેવામાં આવ્યું छ. (एवं कार केवइय' का ठिई पण्णत्ता ! गोयमा! एवं भाणियव्वं) मा પ્રમાણે જ દરેક કલપમાં કેટલું આયુ પ્રજ્ઞપ્ત થયેલું છે? આ જાતનો પ્રશ્ન કરી લે અને હે ગૌતમ! તેને જવાબ આ પ્રમાણે જાણી લેવું જોઈએ કે (लंतर जहन्नेणं दखसागरोवमाई, उक्कोसणं चउद्दससागरोवमाइं) ends કપમાં જઘન્યની અપેક્ષાએ ૧૦ સાગરોપમ જેટલું અને ઉત્કૃષ્ટની અપે सारी १४ सागरी५ २८९ मायुछे (महा सुक्के जहन्नेणं चउदसम्रागरोवमाई' उक् कोसेणं सत्तरससागरोवमाइ) भांशुमा धन्यस्थिति १४ सागर।५मनी अ ट श्रिति १७ २१५ की छे. (सहसारे जहण्णेणं सत्तरससागरोबमाइ', उनकोसणं अट्ठारस सागरावमाइ) सखार For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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