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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ अनुयोगद्वारसूत्रे रोपमे । ईशाने खलु महन्त ! कल्पे परिगृहीतदेवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ?, गौतम ! जघन्येन सातिरेकं पल्योपमम्, उत्कर्षेण नत्र पल्योपमानि । ईशाने खलु भदन्त ! कल्पे अपरिगृहीतदेवीनां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ?, गौतम जवन्येन सातिरेकं पल्योपमम् उत्कर्षेण पञ्चपञ्चाशत् पल्योप साइरेगं पलिओयमं, उक्कोसेणं साहरेगाइ दो सागरोवमाइ ) हे गौतम ! ईशान कल्प में देवों की आयु जघन्य से तो कुछ अधिक पोपम की कही गई है और उत्कृष्ट से कुछ अधिक दो सागरोपम की है। (ईसाणे णं भंते! कप्पे परिग्गहिया देवीणं केवइयं कालं ठिई पत्ता ?) हे भदन्त ! ईशान कला मे परिगृहीत देवियों की आयु कितनी कही गई है ? (गोषभा ! जहण्णेणं साइरेगं पलिओयमं, उक्कोसेणं नव पलिभवाइ) हे गौतम! ईशानकल्प में परिगृहीत देवियों की आयु जघन्य से तो कुछ अधिक एक पल्योपम की और उत्कृष्ट से नौ पल्योपम की कही गई है। (ईसाणे णं भंते! कप्पे अपरिग्गहियाण देवीणं केवहयं कालं ठिई पण्णत्ता ? ) ईशान कल्प में हे भदन्त । अपरिगृहीन देवियों की आयु कितनी कही गई है ? (गोधमा ! जपणे साइरेगं पलिओवमं उक्कोसेणं पणपणपलिओचमाई) हे गौतम | ईशान कल्प में अपरिगृहीत देवियों की आयु जघन्य से , मा० छे ? (गोवमा ! जहणणेग खाइरेगं पलिओवम उक्कोसेण साइरेगाई दो सागरोमाई) डे गौतम ! ईशान उपमा देवानु आयु धन्यनी अये. ક્ષાએ તે કાંઇક વધારે પલ્ટેપમ જેટલુ કહેવામાં આવ્યું છે અને ઉત્કૃષ્ટથી कुंड वधारे मे सागरोपम भेटलु उडेमां मन्युं छे. (ईसाणेण भंते ! कपे परिगहिया देवोण केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ?) डे ल त ! ईशानउपमां परिगृडीत देवीनं आयु लुडेवामां आव्यु छे ? (गोयमा ! जह देवीण केवइय 'साइरेगं पलिओम, उक्कोसेण नव पछिओत्रमाई) हे गौतम १ शानકલ્પમાં પરિગૃહિત દેવીએ નુ' આયુ જઘન્યની અપેક્ષાએ ત કઇક વધારે એક પલ્વેપત્ર જેટલુ' અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ નવ પથૈપમ જેટલું डेवामां आव्यु छे. (ईलाणेग भंते! कप्पे अपरिगहियाण काल' ठिई पण्णत्ता ?) ईशान उपमा हे लढत ! अपरिगृद्धीत हे मोनु आयु Jeg sa Hig? (naar! agoñq' agti qfsstaa'! sealसेण पणपण्णप लिओ माई ) हे गौतम! ईशानपमा अपरिगृहीत हेवी એનું આયુ જઘન્યની અપેક્ષાએ તે કંઈક વધારે એક પત્યેપમ જેટલુ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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