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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुः स्थितिनिरूपणम् ३३३ परिगृहीतदेवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता गौतम ! जघन्येन पल्योपसम् उत्कर्षेण सप्तपल्पोपपानि । सौधर्मे खलु भदन्त ! कल्पे अपरिगृहीतदेवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञपा ? गौतम ! जघन्येन पल्योपमम् उत्कर्षेण पश्चाशत्रु पल्योपमानि | ईशाने खलु भदन्त ! कल्पे देवानाँ कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सातिरेकं पल्योपमम्, उत्कर्षेण सातिरेके द्वे सांग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , 3 और उत्कृष्ट दो सागरोपम की है (सोहम्मे णं भंते! कप्पे परिग्गहिया देवीणं केवrयं कालं ठिईपण्णत्ता ?) सौधर्म कल्प में हे भदन्त ! परिगृहीत देवियों की आयु कितनी कही गई है ? (गोयमा ! जहणणेणं पलिओदमं उक्को सेणं सत्तपलि भोमाई) हे गौतम! सौधर्मकल्प में परिगृहीत देवियों की आयु जघन्य से तो एक पत्थोपन की और उत्कृष्ट से सात पत्योपम की कही गई है। (सोहम्मेण भंते ! कप्पे अपरिगहिया देणं वयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भदन्त ! सौधर्म कल्प में अपरिगृहीत देवियों को आयु कितनी कही गई है ?) (गोयमा ! जहणेणं पलिश्रोत्रमं, उक्कोसेगं पण्णासपलि ओवमाई) हे गौतम! सौधर्मकल्प में अपरिगृहीत देवियों की आयु जघन्य से तो १ पल्पो पम की कही गई है और उत्कृष्ट से ५० पत्थोपम की है । (ईसाणेणं भंते! कप्पे देवाणं केवश्यं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भदन्त ! ईशान कल्प मे देवों की कितनी आयु कही गई है ? (गोयमा ! जपणेणं छे. (सोइम्मेण भंते ! कप्पे परिग्गहिया देवीण केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ? ) સૌધ કલ્પમાં કે ભદંત ! પરિગ્રહીત દેવિઓનું આયુ કેટલું કહેવામાં मा०यु छे ? (गोयमा ! जइण्णेण पहिओवम उक्कोसेणं सत्त पलिओ माई ) હું ગૌતમ ! સૌધમ કલ્પમાં પરિગૃહીત દેવઆનુ' આયુ જઘન્યની અપેક્ષાએ તે એક પધ્યેાપમનુ અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત પક્ષેાપમ જેટલું કહેવામાં આવ્યુ छे. (सोहम्मे भंते! कप्पे अपरिग्गहिया देवीणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता १) હે ભદંત ! સૌધ કલ્પમાં અપગૃિહીત દેવીએ!નું આયુ કૈટલું કહેવામાં २० छे? (गोत्रमा ! जहणेण पहिओवम उक्कोसेण' पण्णासं पलिओ माई ) હું ગૌતમ ! સૌધમ કલ્પમાં અપરિગ્રßીત દેવીઓનું માયુ જઘન્યની અપેક્ષાએ તા ૧ પક્ષેાપમ જેટલું કહેવામાં આવ્યું છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૫૦ यहयोपमनु वामां भाव्यु छे. (ईसाणेण भंते! कप्पे देवाण' केवइय' काढ . ठिई पण्णचा ?) डे महत | इशान उपमां देवानुं यु ददुः वाभा For Private And Personal Use Only 9
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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