SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ अनुयोगद्वारसूत्रे अन्तर्मुहूर्तम् । पर्याप्तगर्भव्युत्क्रान्ति कभुजपरिसर्पस्थल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम । जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण पूर्व कोटिः अन्तर्मुहूतना । खेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम । जघन्येत्र अन्तर्मुहर्त्तम्, उत्कर्षेण एल्योपमस्य असंख्येयमागम् । समूच्छिम खेव र पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण द्विसप्पति वर्षसहस्राणि अपर्याप्त संमूच्छिमखेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्त उत्कपेणापि याणं पुच्छा - गोयना ! जहन्नेण वि अंतोनुहुन्त उक्कोसेण वि अनोमुस) अपर्यातक गर्भजभुजपरिसर्पथलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की स्थिति हे गौतम! जवन्य से भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की है। (पज्जन्तगगभवक्कंतिय भुच परिसप्पधलयर पंचिदियतिरिक्ख तोणियाणं पुच्छा - गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहन्त उक्कोसेणं अंगोमुत्तूणा पुण्बकोड़ी) पर्याप्त गर्भज भुजपरिसर्पथलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की स्थिति हे गौतम । जघन्य से तो अंतर्मुह की है और उत्कृष्ट से एक अंतर्मुहूर्त्त कम करोड़ पूर्व की है । (खहयर पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोधमा ! जहणेणं अतोमुहत उक्कोसेणं पलिओदमस्स असंखेज्जइभागं ) खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यों की स्थिति हे गौतम! जघन्य से अंतर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट से एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। (संमुच्छिमखहपर पंचिदियतिरिक्खजोणि भुयपरिप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा गोयमा ! जद्दन्नेण वि अंतोमुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) अपर्याप्त गर्ल लुम्परिसर्प यसપંચેન્દ્રિયતિય ચેાની સ્થિતિ હૈ ગૌતમ ! જઘન્યની અપેક્ષાએ પણ અંતર્મુ હૂત્ત જેટલી છે અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ પશુ અંતર્મુહૂત્ત भेटसी छे. (पज्जतगगन्भवक्कं तियभुय परिप्पथ लयरपंचि' दियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तूणा पुव्वकोडी) पर्यास ગ જ ભુજરિસપ`થલચર પચેન્દ્રિય તિય ચાની સ્થિતિ હૈ ગૌતમ ! જઘન્યની અપેક્ષાએ તેા અંતમુહૂત્ત જેટલી છે અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ એક અંતમુહૂત્ત ન્યૂન खेड रोड पूर्वनी छे. (खह यर पंचे दिंयतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा - गोयमा-जहणणं अंतोमुडुत्तं उक्कोसेणं पलिओ मस्स असंखेउजइभागं ) मेयर पथेन्द्रिय तिर्यथोनी स्थिति है गौतम ! धन्यनी અપેક્ષાએ અંતર્મુહૂત્ત જેટલી છે અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પથૈાપમના અસખ્યાતમાં ભાગ नेटशी छे. (संमुच्छि मन इयरपंचि दियतिरिक्खजोणियाणं For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy