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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ अनुयागद्वारसूत्रे पूर्वकोटिः । असं मूर्छिम जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूर्त्तम् | पर्याप्त संच्छिमजलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् उत्कर्षेण पूर्वकोटि अन्तर्मुहतौना । गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जयन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षेण पूर्वकोटिः । अपर्याप्तगर्भव्युत्क्रान्तिक घर तिश्च पंचेन्द्रिय जीव संमूच्छिमजन्म वाले हैं उनकी स्थिति जघन्य से मुहूर्त की है और उष्कृष्ट से १ करोड पूर्व की है । ( अपज्जसमुच्मि जल पर पंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा - गोयमा ! जपणेगवितोमुत्त उनकोसेण वि अंनोमुत्त) संमूच्छिमजन्मवाले जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों में जो अपर्यातक संमूच्छिमजमवाले जलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्च जीव है उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार से अंतर्मुहूर्त की है । (पज्जत्तय संमुच्छिमजलयरपंच दियतिरिक्ख जोणिवाणं पुच्छा-गोषमा! जहणेणं अंतोमुहत्त उक्कोसेणं अंतोमुत्तणा पुत्रबकोंडी) जो पर्याप्तक संमूच्छिम पंचेन्द्रिय जलचर तिर्यश्च है, उनकी स्थिति जघन्य से तो अंतर्मुह की है और उत्कृष्ट से अंतर्मुहर्त्तकम एक करोपूर्व की है। ( गग्भवक्कंतिय जल पर पंचेंद्रियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोषमा ! जहणेणं अंतमुहरु उक्कोसेर्ण पुoयकोडी) गर्भजन्मवाले जो पंचेन्द्रिय जलचरतिर्यश्च है, उनकी स्थिति हे गौतम जघन्य જે જલચર પાંચેન્દ્રિય જીવે સમૂમિ જન્મવાળા છે. તેમની સ્થિતિ જાન્યની અપેક્ષાએ અંતર્મુહૂત્તની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧ કરોડ પૂની છે. (अपज्जतासंमुच्छि जलयर पंचेद्दियतिरिक्ख जोणिगाणं पुच्छा - गोयमः ! जहणेणं वि अंतोमुत्तं उकोसेण वि अतो मुहुत्तं सभूमि नन्सवाना ४सयर पथेન્દ્રિય તિય ચ જીવેામાં જે અપર્યાપ્તક સમૂચ્છિ॰મ જન્મવાળા જલચર ૫'ચેન્દ્રિય તિયચ જીવે છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ બન્ને પ્રકારે અંત भुनी छे. तसं मुजि उरपंच दियतिरिक्खजोगियाणं पुच्छा गोयमा ! जणे गं अंतोमुडुत्तं उनकोसेणं अतोमुडुतूणा पुव्वकोडी) ने पर्याप्त सभूमि पथेन्द्रिय सथर તિય ચેા છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ તા અંતર્મુહૂત્ત'ની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી અતર્મુહૂત્ત ન્યૂન એક કરોડ પૂર્વી જેટલી छे. (गभव कति व जलयरपंच दिगतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा गोयमा ! - जह अंतमहुतं कोण पुत्रकोड़ी गर्मन्सवाला ने पंचेन्द्रिय તિય ચે છે, તેમની સ્થિતિ હૈ ગૌતમ ! જન્યની અપેક્ષાએ તેા सयर For Private And Personal Use Only અંતર્મુ
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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