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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगक्षन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थिति निरूपणम् ३१३ पल्पोपमानि । जलचरपञ्चन्द्रियतियरमोनिकानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञताः ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण पूर्वकोटिः। संछिमजलचरपञ्चेन्द्रिगतियग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येल अन्तर्मुहर्तम् , उत्कर्षण कम छह मास की है। (पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवयं कालं ठिई पण्णता ?) है भदन्त ! पंचेन्द्रियतियश्चों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर:- (गोयमा-जहण्णेणं अंतोमुहुत उक्कोसेणं तिणि पलिओषमाई) हे गौतम पंचेन्द्रिय तिर्यश्चों की स्थिति जघन्य से तो अति मुहूर्त की कही गई है उस्कृष्ट से तीन पल्योपग की कही गई है । (जल. यरपंचेदियतिरिक्खोणियाणे भंते ! केवयं कालं ठिई पण्णता?) हे भदन्त ! जो जलचर तिर्यश्च पंचेन्द्रियजीव हैं उनकी स्थिति कितने काल की ज्ञप्त हुई है ? उत्तर:---(गोगमा ! जहण्णेणं अंतोनुहुत उक्कोसेणं पुचकोडी) हे गौतम ! जलचर तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य से तो अन्तर्मुहूर्त की प्रज्ञप्त हुई है और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की अर्थात् एक करोड़ पूर्व की। (संतुच्छिमजलयरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा गोषमा जहण्डोगं अंतोमुहत उक्कोसेगं पुचकोडी) जो जल. भास २८सी. (पंवेदियतिरिक्खजोणियोणं भंते ! केवइयं कालं लिई पण्णत्ता ?) હે સદંત ! પંચેન્દ્રિય તિર્યચેની સ્થિતિ કેટલા કાલ જેટલી કહેવામાં આવી છે? उत्तर-(गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई) હે ગૌતમ ! પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ તે અન્તર્મહૂની કહેવામાં આવી છે. અને ઉત્કૃષ્ટધી ત્રણ પામ જેટલી કહેવામાં भावी छे. (जल परपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) ३ मत ! २ सय२ तिय य ७॥ छ, तमनी स्थिति કેટલા કાલની પ્રજ્ઞપ્ત થયેલી છે ? उत्तर-(गोधमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं उकेसेणं पुव्व कोडी) गीतम! જલચર તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય જીવોની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ તે અનન્તમુહૂર્તની પ્રજ્ઞપ્ત થયેલી છે. અને કૃદની અપેક્ષાએ પણ એક પૂર્વ કોટિની सेट से 3 पूनी प्रज्ञ सी. (समुच्छिमजलयरपंचेदियतिरिक्ख. जोणियाणं पुन्छ गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुबकोडी) हे गौतम ! अ० ४० For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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