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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र मिति सूचयितुमाह-देनदारपल्पोपममिति ।। मूले-'तेगं बालागा' इति प्रथमा. स्तत्वेन द्वितीयान्तत्वेन च तन्त्रेण निर्दिष्टम् सूत्रे पुंस्त्वमाषत्वात् ।।मू० २०४॥ चाहिये कि ये जो बालाग्रखंड हैं वे असंख्योत हैं। प्रतिसमय एक एक बालाय खंड के निकालने पर संख्यात वर्ष कोटिकोटि समाप्त हो जाती है । इसलिये इसका मान संख्यात वर्ष को टिका है । (एएसि पल्लाणं कोडाकोडीहवेज्जदसगुणिया सुहमास उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं) इन पल्योंकी १० गुणित जो कोटिकोटि है, वह एक सक्ष्म उद्धारसागरोपम का परिमाण होती है। (एएहिं सुहम उद्धारपलिभोवमसागरोवमेहिं किपओयण) हे भदन्त ! इन सूक्ष्म उद्धार पल्योपम एवं सूक्ष्म उद्धार सागरोपम से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? उत्तर-(एएहिं सुहम उद्धार पलिओषमसागरोयमेहिं दीवसमुदाणं. उद्धारो घेप्पइ) इन मूक्ष्म उद्धारपल्योपम एवं सूक्ष्म उद्धार सागरोपम से द्वीप समुद्रों का उद्धार प्रमाण ग्रहण किया जाता है। (केवयाणं भंते! दीवप्तमुद्दा उद्धारेणं पगता) यहां शिष्य पूछता है-हे भदन्त ! उद्धारपल्योपम एवं उद्धारसागरोपम कितने द्वीपसमुद्रों को बताते हैं ? उत्तर-(गोयमा ! जावयाणं अड़ा इजाणं उद्धार सागरोवमाणं उद्धारसमया एवल्याणं दीवसमुद्दा उद्धारेणं-से तं सुहुमे उद्धारपलिજાણવું આવશ્યક છે કે આ જે બાલાગ્ર ખંડે છે, તે અસંખ્યાત છે પ્રતિ સમય એક–એક બાલાગ્ર ખંડને બહાર કાઢવાથી સંખ્યાત વર્ષ કેટ કેટિ સમાપ્ત થઈ જાય છે. એથી આનું નામ સંખ્ય ત વર્ષ કેટિનું છે. (एएलि पल्लाण कोडाकोडी हवेज दस गुणोया तं सुहमा उद्धारसागरोवमस्स एगास भवे परिमाण) । पश्येमनी १० गुणित -छि त सू६५ द्वार गरेपभनु परिराय य छे. (एए पहमालि भोवम पागरोवमे हि कि पओयणं) ! शा सूक्ष्म उद्धा२५च्या ५५ भने सू६॥ ६२ સાગરેપમથી કયું પ્રયજન સિદ્ધ થાય છે? उत्तर-(एएहि सुहुम उद्धारपलि भोरमसागरोवमेहि दीवस मुद्दाणं उद्धारो घेपह) मा सूक्ष्म २५६२.५म मने सूक्ष्म उद्धा२ सा३।५मथी द्वीप समुद्रोनी मत्री माटे द्वार प्रभाय ७७ ४२३॥मां भाव छ (केवइया णं भंते ! दीवस मुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता) ही शिष्य ५५ रे 2-3 ભત ! ઉદ્ધર પલ્યોપમ અને ઉદ્ધાર સાગરોપમ કેટલા દ્વીપ સમૂહને બતાવે છે? उत्तर-(गोयमा ! जावइयाणं अड्डाइज्जा ण उद्धार सागरोत्रमाण उद्धारसमया एपइयाण' दीवममुद्दा उद्धारेण-से तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे) 3 जीतम। For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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