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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०४ पल्योपमादीनां यमिक प्रमाणनिरूपणम् २६९ इत्यारभ्य 'निष्ठितं भवति, तदेतदुद्धारवल्योपमम्' इत्यन्तः पाठः सुगमः | अत्रेदं बोध्यम् एषां वाळाप्रखण्डानामसंख्येयत्वात् प्रतिसमय मे कैक वालाग्रखण्डापहारे संख्येवा वर्षटयों व्यतियन्ति, अतः संख्ये वर्ष कोटिमानमिदमिति । एतेष पल्यानां कोटीकोटिदशगुणिता एकं सूक्ष्ममुद्धारसागरोपममुच्यते । एतेषां सूक्ष्मोद्वारपल्योपमसागरोपमानां प्रयोजनं किम् ? इति पृष्टः आह एतैः सूक्ष्मोद्धारपल्योपमसागरोपमैः द्वीपसमुद्राणामुद्धारो गृह्यते । अत्र पृच्छति कियन्तः खलु भदन्त । द्वीपसमुद्रा उद्धारेण प्रज्ञप्ताः ? उत्तरयति - गौतम यावतामतृतीयानाम् उद्धारसागरोपमानामुद्धारसमया भवन्ति, एतावन्तः खलु द्वीपसमुद्रा उद्वारेण मज्ञताः । मकृतमुपसंहरति- तदेतत् सूक्ष्ममुद्धारपल्योपममिति । इत्थमुद्धारपल्योपममुपसंहृतअग्गी डहेज्जा, णो वाऊ हरेज्जा, णो कुहेज्जा, णो पलिविद्ध सिज्जा, णो हस्ताए हन्यमागच्छेज्जा) इन पदों का अर्थ व्यावहारिक पत्थ के अर्थ में लिख दिया है । (तओणं समए समए एगमेणं बालग्गखंडं अवहाय जावहणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे गिट्टिए भवह सेतं मे उद्धारपलिओ मे) उन बालाग्रखंडों में से प्रत्येक बालाग्रखंड को समय समय पर निकालना चाहिये । इस प्रकार वे बालाग्रखंड जितने समय में उस पल्प से संपूर्ण निकल जाते हैं, उतने काल का एक सूक्ष्म उद्धारपत्योपम होता है । 'खोणे नीरए इत्यादि सूत्रस्थ शब्दों का अर्थ पहिले लिख दिया गया है सो यहां पर भी वैसा ही इन पदों का अर्थ जानना चाहिये । ( से तं सुहमे उद्धारपलिओ मे) इस प्रकार यह सूक्ष्म उद्धारपल्योपमका स्वरूप है। यहां पर यह जानना स्याम लावु भेडो, (तेण बालगखंडा णो अग्गी डहेज्जा, णो वाऊ हरेज्जा, जो कुहेज्जा, जो पलिविद्धंसिज्जा, णो पूइत्ताए हव्त्र मागच्छेज्जा) मा पहना અર્થ વ્યાવહારિક પક્ષ્યના અર્થમાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યે છે. (સોળ' समए समय एगमेगं बालगाखंड अवहाय जावइएण कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे णिट्टिए भवइ से तं सुहुमे उद्धारपलिओ मे ) ते बासाथ भडेમાંથી દરેકેદરેક ખાલાચ ખંડને સમય સમય પર મહાર કાઢવા જોઈએ આ પ્રમાણે તે ખાલગ્ર ખડા જેટલા વખતમાં તે પથ્યથી પૂરે-પૂરા ખહાર નીકળી જાય છે તેટલા કાલના એક સૂક્ષ્મ ઉદ્ધાર પચેપમ થાય છે "खाणे नीरर " वगेरे सूत्रस्थ शब्दोनो अर्थ पडेल स्पष्ट उरवामां आव्यो छे, तो डी पशु ते प्रमाणे अर्थ व लेो. (से तं सुहुमे उद्धार पलि ओवमे) आ रीते या सूक्ष्म उद्धार पहयेोपमनु स्व३५ छे सहीं भे For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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