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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे परिज्ञानवान् , निपुणः-उपायारम्भका, तथा-निपुणशिल्पोपगतः-निपुणं-सूक्ष्म यत् शिल्पं तेन उपगतः समन्वागतः-मूक्ष्मशिल्पयानित्यर्थः । एवंविधविशेषणवि. शिष्टस्तुन्नवायदारक एका महतीं पटशाटिकां कार्पासशाटिकां वा पट्टशाटिका कृमिजतन्तुशाटिकां वा गृहीत्वा 'सयराह ' ति- झटिति हस्तमात्रम् हस्तप्रमाणम् अपसारयेत-स्फाटयेत् । तत्र-एवं गुरुगोक्ते नोदका शिष्यः प्रज्ञापकं-गुरुमेवम् अवादीतू-उक्तवान्-येन कालेन यावता कालेन तेन तुम्नवारदारकेण तस्याः पटशाटिकाया वा पट्टशाटिकाया वा झटिति हस्तमात्रमपसारितम् , स समयो भवति किम् ? गुरुराह-नायमर्थः समर्थः । कस्मात् ? यस्मात् तन्तूनां समुदयस. हो (मेहावी) मेधावी हो अर्थात् एक बार देखा सुना हुआ कार्य का ज्ञानवाला हो, (निउणे) निपुण हो-चतुर हो, (निउणसिप्पोवगए) सिनेकी कला में निपुण हो। इन विशेषणों से युक्त बना हुआ वह दर्जी का लडका (एगे महापडसाडियं वा पट्टमाडियं वा) एक बहुत बडी भारी सूत की शाटिका को अथवा रेशमी शाटिका को (गहाय) लेकर (सयराह) घडी शीघ्रता से (हत्यमेतं ओसारेजा) एक हाथ प्रमाण फाड देता है । (तस्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी) इस पर प्रश्न काशिष्य गुरु से ऐसा पूछता है कि (जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाड़ियाए वा सयराहं हत्यमेत्ते ओसारिए से समए भवा ?) जितने काल में उस दर्जी के लडकेने उस सूत की शाटिका को अथवा रेशम की शाटिका को एक हाथ प्रमाण फाडा है तो क्या हे भदन्त ! वही समय है ? એટલે કે એક વખત જેલ અને સાંભળેલ કાર્યનું જ્ઞાન ધરાવતે હેય, (निउणे) निघुगु डाय, चतुर डाय, (निउणे सिप्पावगए) सी१५ साभानिपुर हाय, मा विशेषथा समत येत ते ६७ पुत्र (एग्गे महइ पडसा. डियं वा पट्टसाडियं वा) मे भूम४ भोटी सारे सूतरनी शाटने अथवा देशभी शनि (गहाय) सधन (सयराह) ३६५ ताथी (हत्थमेत्ते ओसा. रेज्जा) मे 612 Auy a नामे छे. (तत्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी) ॥ विष प्रश्नत्त शिष्य गुरुने मा प्रमाणे प्रश्न ४२ छ । (जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसा डेयाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्ते ओसारिए से समए भवइ ?) रेसा अभी तना हीराते सूतरनी શાટિકાને અથવા રેશમની શાટિકાને એક હાથ પ્રમાણ ફાડી નાખી છે, તે शुमत! ते समय छे ? For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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