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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सू २०२ समयस्वरूपनिरूपणम् -२३५ समश्रेणीक युगर-द्वयम् , परिव = सपाटाला च, एतन्निभौ एतत्सदृसौ दीर्घसरलपीनत्वादिना बाहू यस्य स तथा । इत्यं स्वाभाविकं सामर्थ्यमुपदर्य आग न्तुकोपकारण सामर्थ्यमाह-चर्मेप्टका द्रुघणबुष्टिकसमातिनिचितगात्रकाय:चर्मामाता इष्टका-वर्मेष्टका प्रहरणविशेषः, द्रुघणः=मुद्गरः, मुष्टिक:-मुष्टिबन्धः एतैः समाहननेनपायामकाले समोहननेन निचितानि दृढानि गात्राणि-अङ्गानि यस्मिन् , एतादृशः काय:-शरीरं यस्य स तथा, चर्मेष्टिकादिप्रहारेण सशक्तशरीर इत्यर्थः । तथा औरस्पब समन्वागतः-औरस्यं-सहजं यद् बलं तेन समन्वागत = युक्तः-आन्तरोत्साहवीयवानित्यर्थः। लङ्घनप्लवनजवनव्यायामसमर्थः तत्रलङ्घनम्-कूदनम् , प्लवनम् बाहुभ्यां नद्यास्तरणम् , जवनंधावनम् , एतद्रूपो व्यायामस्तेन समर्थः सामर्थ्य सम्पन्नः। तथा छेका प्रयोगज्ञः, दक्षः शीघ्रकारी, प्राप्तार्थः स्वकर्मज्ञः, कुशला= आलोच्य कार्यकर्ता, मेधावी सकृच्छ् तदृष्टकमजमलजुयलपरिघणिमवार) दीर्घता, सरलता और पीनता की दृष्टि में जिसके दोनों घाह समश्रेणिवाले दो तालवृक्षों के समान और कपाटार्गला के जैसे हो तथा (चम्मेलुगदुहणमुष्ट्रियसभाहयनिचियगसकाए) व्यायाम करते समय चर्मेष्टिका-प्रहरणविशेष. द्रुघण-मुद्गर, मुष्टिक-मुष्टि करन्ध, इनके फेरने से जिनके शारीरिक अवयव बहुन अधिक दृढ हो गये हो, (उरस्लयलसमण्णागए) स्वाभाविकपल जिसमें खूप भरा हो, 'लंघणवणजवणायाम समस्थे) कूदना, तैरना, दोडना इसरूप व्यायाम से जो सोमय संपन्न हो, (छेए) जो छेक हो अर्थात् कपडे फाडने कि युक्ति को जानने वाला हो, (दक्खे) दक्ष हो (पत्त?) अपने कार्य का ज्ञाता हो, (कुसले) विचार के काम करनेवाला महु पि डाय, (तलजमल जुयल परिघणिभवाहू) होता, सरसता भने પીનત્વની દષ્ટિએ જેના બને બાહુઓ સમશ્રેણિવાળા બે તાલ વૃક્ષે જેવા भने पाया (313) 24 हाय तेभर (चम्मेलुगदुहणमुट्टियसमाह्यनिचियगत्तकाए) व्यायाम ४२ती मते या प्रह२५ विशेष, दुध-मुहार, मुष्टि:મુષ્ટિ-બન્ય, ફેરવવાથી જેના શારીરિક અવય બહુજ સુદૃઢ થઈ ગયા હોય (उरस्सबलसमण्गागए) साविण २मा म हाय, (लंघणपवणजवणवायामसमत्थे) , त२, हो मेरे ३५ विविध व्यायामाथी२ સામર્થ્ય સંપન્ન હય, (ર) જે છેક હોય, એટલે કે કાપડ ફાડવાની યુક્તિને सारी Na Megh। डाय (दक्खे) ४६ डाय (पत्तद्वे) पाताना या प्रवीण सराय (कुसले) ५५ पिया२५' आम ४२॥३॥ अय, (मेहावी) मेधावी डाय, For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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