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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ अनुयोगद्वारसूत्रे विचार्यते । एतेषु वादरत्वमेव संभवति न तु सूक्ष्मत्वम्, अतो नात्र सूक्ष्मत्वेन चिन्ता क्रियते । द्वादरायोजन परिमिता शरीधरगाहना स्वयम्भू मणादि जातानां शङ्खानां बोध्या । एवमेव त्रीन्द्रियेषु चतुरिन्द्रियेषु च स्थानत्रयेऽवगाहना बोध्या । उत्तर :- हे गौतम! जघन्य से अंगुल के अलंश भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट से बारह योजन प्रमाण है । यह सामान्यरूप से दीन्द्रि यजीवों की अवगाहना का प्रमाण कहा गया है । (अज्जन्तगाणं जहनेणं अंगुलस्त असंखेज्जहभाग, उक्कोसेणं त्रि अंगुलस्त असंखेज्जह भाग) अपर्याप्तक जो द्वीन्द्रिय जीव है उनकी अवगाह्ना जघन्य से और उत्कृष्ट से भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । (पज्जन्त गाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभाग, उक्कोसेणं बारसजोषणाई पर्यातक जो द्वीन्द्रिय जीव है उनकी अवगाहना जघन्य में अंगुल के असंपातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट से १२ योजन प्रमाण है । यह १२ योजन प्रमाण अवगाहना स्वयंभूरमण आदि में उत्पन्न हुए शंखो की अपेक्षा कही गई जाननी चाहिये। (तेइंदियाणं पुच्छा-गोयमा ! जह न्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्को सेणं तिरिण गाउयाई) प्रश्न - हे भदन्त ! त्रीन्द्रिय जीवों की अवगाहना का क्या प्रमाण है? उत्तर:- हे गौतम! नीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोश की ઉત્તર-હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ખાર ચેજન પ્રમાણુ છે. આ સામાન્ય રૂપથી દ્રન્દ્રિય જીવાની अवगाडुनानु प्रभाणु उडेवामां आव्यु छे. ( अपज्जत्तगाणं जहन्ने अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) अपर्याप्त हीन्द्रिय જીવા છે, તેમની અવગાહના જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ અંગુલના અસभ्यातमा लाग प्रभाशु छे. (पज्जत्तगाणं जहन्नेणं अंगुळस्स असंखेज्जइभागं, उक्को सेण बारस जोयणाई) पर्यास के द्वीन्द्रिय व छे तेमनी अवगाडुना જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણુ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧૨ ચેાજન પ્રમાણ છે. આ ખાર ાજન પ્રમાણ અવગાહના સ્વયંભૂ મણ વગેરેમાં उत्पन्न थयेव श'भेोमी अपेक्षा वामां आवी छे (ते इंदियाणं पुच्छागोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जनागं, उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाई) પ્રશ્ન હૈ ભદ ́ત ! ત્રીન્દ્રિય જીવેની અવગાહનનું પ્રમાણ કેટલું છે? ઉત્તર-હે ગૌતમ! ત્રીન્દ્રિય જીવાની જઘન્ય અવગાહના અંગુલના અસ ખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણુ છે અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના ત્રણ ગાઉં જેટલી For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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