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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९३ आत्माश्गुलप्रमाणप्रयोजननिरूपणम् १२३ सरः सरः पङ्कको विपक् आरामोद्यानकाननवनवन पण्डवनराजयः देवकुलसमापार वातिकापरिखाः प्राकाराद्दालक चरिकाद्वार गोपुरमासादगृहशरणलयनापणशृङ्गाट त्रिकचतुष्कचत्वर चतुर्मुखमहापथपथिशकटस्थानयुग्य गिल्लि थिल्लिशिविकास्पन्दमानिया लौडीलोहकटाएक टिल्लक भण्ड।मत्रोपकरणादिकानि अधकालिकानि च योजनानि माध्यन्ते । तत् समासतः त्रिविधं प्रज्ञसम् वक्राकार वाली बावड़ी, सर-अपने आप बना हुआ जलाशय विशेष, सरःपंक्ति ( सरसरपंतियाओ ) सरःसरपंक्ति (बिलपंतियाओ ) बिलपंक्ति, ( आरामुज्जाणकाणणवणवण संडवणराईओ देउलसभा पवा धूमखाह अपरिहाओ ) आराम, उद्यान, कानन, वन वनषंड, वनराजि, देवकुल, सभा, प्रपा स्तूप, खातिका परिवा, (पागार अहालय चरियदारगोपुर पासायंघरसरणलयण आपण सिंघाडगतिगच उक्कचच्चरच उम्मापपगड रह जाणजुग्गगिल्लि थिल्लि सिविधसंदमा - णियाओ) प्राकार, अट्टालिका, चरिका द्वार, गोपुर, प्रासाद, गृह, शरण, लगन, आपण, शृंगाटक, त्रिक, चतुर, चरवर - चतुर्मुख, महापथपत्र, शकट, रथ, यान, युग्य, निहिल, थिल्लि, शिविका, स्यन्दमानिका (लोहिलोहक डाक डिल्लय मंडमत्तो बगरणमाईणि अज्ज कालियाइं च जोयणाई मविज्जति) लौही, लोहकटाइ, कटिल्लक, भाण्डअमत्र, उपकरण अपने २ समय में उत्पन्न हुई वस्तुएँ और योजन इन सबका माप किया जाता है। तात्पर्य यह है कि आत्मगुल का इन पूर्वोक्त પોતાની મેળે જ બનેલ જલાશય એટલે કે મેટુ સરોવર, સરઃ કેત ( सरखर पंतियाओ) सरः सरः पंडित (त्रिपंतियाओ) पिडित, (आरामुजाणकाणणवणवण संडवणराईओ देउसभापवाभाइ अपरिहाओ) આરામ, उद्यान, कानन, वन, वनषडे, वनरानि, हेवटुस, सला, अया, स्तूप, जातिभ, परिया, (पागार अदृ/लय वरियदारगो पुरवासायघरसरणलयण आवण सिंघाडगलिगचउक्कचच्चरच उम्मुमहापहपहसगड र ह जोण जुग्गगिलिथिलिसिविय संद्माणियाओ ) आहार, अट्टासि यरि, द्वार, गोपुर, साह, गृह, शरणु, वयन, आपणु, श्रृंगार, त्रिः तुष्ट, यत्वर, यतुर्भु', महापथ, पथ, शउट, २थ, यान, युभ्य, जिल्सि, थिंडिस, शिक्षित, स्यंद्वभानिश, (लोहिलोहक डाहक डिल्लयभंडमत्तोड़गरणमा ईणि अकालियाई व जोयण ई मनिज्जति) बोडी, बोटाड, उटिल्स, लांड, अमंत्र, ઉપકરણ, પોતાના સમકાલીન યુગમાં ઉત્પન્ન થયેલ વસ્તુઓ તેમજ યાજન For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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