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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९३ आत्माश्गुलप्रमाणप्रयोजननिरूपणम् १२३ सरः सरः पङ्कको विपक् आरामोद्यानकाननवनवन पण्डवनराजयः देवकुलसमापार वातिकापरिखाः प्राकाराद्दालक चरिकाद्वार गोपुरमासादगृहशरणलयनापणशृङ्गाट त्रिकचतुष्कचत्वर चतुर्मुखमहापथपथिशकटस्थानयुग्य गिल्लि थिल्लिशिविकास्पन्दमानिया लौडीलोहकटाएक टिल्लक भण्ड।मत्रोपकरणादिकानि अधकालिकानि च योजनानि माध्यन्ते । तत् समासतः त्रिविधं प्रज्ञसम्
वक्राकार वाली बावड़ी, सर-अपने आप बना हुआ जलाशय विशेष, सरःपंक्ति ( सरसरपंतियाओ ) सरःसरपंक्ति (बिलपंतियाओ ) बिलपंक्ति, ( आरामुज्जाणकाणणवणवण संडवणराईओ देउलसभा पवा धूमखाह अपरिहाओ ) आराम, उद्यान, कानन, वन वनषंड, वनराजि, देवकुल, सभा, प्रपा स्तूप, खातिका परिवा, (पागार अहालय चरियदारगोपुर पासायंघरसरणलयण आपण सिंघाडगतिगच उक्कचच्चरच उम्मापपगड रह जाणजुग्गगिल्लि थिल्लि सिविधसंदमा - णियाओ) प्राकार, अट्टालिका, चरिका द्वार, गोपुर, प्रासाद, गृह, शरण, लगन, आपण, शृंगाटक, त्रिक, चतुर, चरवर - चतुर्मुख, महापथपत्र, शकट, रथ, यान, युग्य, निहिल, थिल्लि, शिविका, स्यन्दमानिका (लोहिलोहक डाक डिल्लय मंडमत्तो बगरणमाईणि अज्ज कालियाइं च जोयणाई मविज्जति) लौही, लोहकटाइ, कटिल्लक, भाण्डअमत्र, उपकरण अपने २ समय में उत्पन्न हुई वस्तुएँ और योजन इन सबका माप किया जाता है। तात्पर्य यह है कि आत्मगुल का इन पूर्वोक्त
પોતાની મેળે જ બનેલ જલાશય એટલે કે મેટુ સરોવર, સરઃ કેત ( सरखर पंतियाओ) सरः सरः पंडित (त्रिपंतियाओ) पिडित, (आरामुजाणकाणणवणवण संडवणराईओ देउसभापवाभाइ अपरिहाओ) આરામ, उद्यान, कानन, वन, वनषडे, वनरानि, हेवटुस, सला, अया, स्तूप, जातिभ, परिया, (पागार अदृ/लय वरियदारगो पुरवासायघरसरणलयण आवण सिंघाडगलिगचउक्कचच्चरच उम्मुमहापहपहसगड र ह जोण जुग्गगिलिथिलिसिविय संद्माणियाओ ) आहार, अट्टासि यरि, द्वार, गोपुर, साह, गृह, शरणु, वयन, आपणु, श्रृंगार, त्रिः तुष्ट, यत्वर, यतुर्भु', महापथ, पथ, शउट, २थ, यान, युभ्य, जिल्सि, थिंडिस, शिक्षित, स्यंद्वभानिश, (लोहिलोहक डाहक डिल्लयभंडमत्तोड़गरणमा ईणि अकालियाई व जोयण ई मनिज्जति) बोडी, बोटाड, उटिल्स, लांड, अमंत्र, ઉપકરણ, પોતાના સમકાલીન યુગમાં ઉત્પન્ન થયેલ વસ્તુઓ તેમજ યાજન
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