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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९३ आत्माङ्गुलप्रमाणप्रयोजननिरूपणम् १२१ वितस्ति भवति । एवं क्रमेण सत्रोक्तप्रकारेण योजनपर्यन्तं क्षेत्रमाणं बोध्यम् ॥ म्रु० १९२ ॥ मूलम् - एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं आयंगुलप्पमाणेणं जे णं जया मणुस्सा हवंति तेसि णं तया णं आयंगुलेणं अगडतलागदहनईवावी पुक्खरिणीदीहिय गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुजाणकाणणवणवण संडवणराईओ देउलसभापवाथूमखाइअपरिहाओ पागारअहालयचरियदारगोपुरपासायघर सरणलयण आवणसिंघा डगतिगच उक्कच चरच उम्मुहमहापहपहसगडरहजाण जुग्गगिल्लिथिलिसिविय संद्माणियाओ लोहीलोहकडाहकडिल्लय मंडमत्तोवगरणमाईणि अज्ज कालियाई च जोयणाई मविजति । से समाप्तओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा धणु, जुगे, नालिया, अक्खे, मुमले, दो धणुसहस्साइं गाउयं चत्तारि गाउयाइं जोघणं ) पाद्रय की एक वितस्ति होती है। दो वितरित की एक रत्नि होती है। दो रत्नि की एक कुक्षी होती है। दो कुच्छी का एक दण्ड होता है । एक धनुष होता है एक युग होता है एक नालिका होती है, एक अक्ष होता है और एक मुसल होता है । ये ६ प्रमाण विशेष दो कुक्षी के होते हैं। दो हजार धनुष का एक गव्यूत होता है । चार गव्यूतों का एक योजन होता है । अर्थात् ४ कोश का एक योजन होता है | सृ० १९२ ॥ नालिया, अक्खे, मुसले, दो धणुसहस्साईं गाउयं चत्तारि गाउयाई जोयणं) पाह યની એક વિદ્ધસ્તિ હાય છે એ વિતસ્તિની એક રત્નિ હોય છે એ પત્નિની એક કુક્ષી હાય છે એ કુક્ષીના એક દડ હેય છે. એક ધનુષ હાય છે એક યુગ હેાય છે, એક નાલિકા હેાય છે એક અક્ષ હાય છે એક મુસલ હાય છે આ ૬ પ્રમાણુ વિશેષ એ કુક્ષીના હાય છે બે હજાર ધનુષને એક ગબૂત (કેાસ) હાય છે ચાર ગભૂત ખરાખર એક ચેાજન હોય છે એટલે કે ચાર ગાઉ બરાબર એક ચેાજન હેાય છે. સૂ૦૧૯૨।। अ०. १६ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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