SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ अनुयोगद्वारसूत्रे तुलयन् पुरुषः उन्मानयुक्तो भवति । अयं भावा-तुलायामारोपितो यः पुरुषः सारपुद्गलचितत्वात् अर्द्ध भारं तुलयति स उन्मानयुक्त इत्युच्यते, इति । तत्रोत्तम पुरुषाः उपर्युक्तः-प्रमाणमानोन्मानैस्तथाऽन्यैश्च गुणैर्युक्ता एव भवन्तीति दर्शयितु. माह - 'माणुम्माणपमाण.' इत्यादि। अयं भाव:-ये पुरुषा मानन्मानममाणयुक्ताःउपरिनिर्दिष्टानोन्मानप्रमाणः सहिताः, तथा-लक्षणव्यञ्जनगुणैः-लक्षणानि% शङ्खस्वस्तिकादीनि, व्यञ्जनानिमपी तिलकादीनि, गुणा: औदायोदयस्तैरुपपेताः= युक्ताः, तथा-उत्तमकुलप्रनताः--उतमकुलानि-उग्रादिकुलानि तेषु प्रभूताः समुत्पन्नाश्च सन्ति, ते उत्तमपुरुषा:-क्रवदियो विज्ञेया इति। एषामुञ्चत्वप्रमाणं माना जाता है। (अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्प्राणजुत्ते भवइ) अर्द्ध भार प्रमाण तुला हुआ व्यक्ति-पुरुष-उन्मानयुक्त होता है-इसका तात्पर्य यह है कि तराजू पर आरोपित हुआ पुरुष सार पुद्गलों से निर्मित होने के कारण अर्द्धभार प्रमाण तुलता है-अर्थात् उसका वजन अर्द्धभार प्रयाग बैठता है तो वह पुरुष उन्मानयुक माना जाता है। जो उत्त। पुरुष होते हैं वे इन उपर्युक्त मान उन्मानप्रमाण वाले होते हैं तथा अन्य गुणों से युक्त ही होते हैं । इसी बात को अब सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-(माणुम्माणपमाणजुता लखगवंजण. गुणेहिं उववेया) जो पुरुष मान उन्मानप्रमाग संपन्न होते हैं, तथा शंख स्वस्तिक आदि लक्षगों से मषा, तिलक-तिल-आदि व्यंजनों से, एवं औदार्य आदि गुणों से युक्त होते हैं ( उत्तमकुलप्पसु या उत्तमपुरिसा मुणेषव्या) उग्रादि उत्तमकुलों में उत्पन्न होते हैं वे चक्र वर्ती आदिरूप उत्तम पुरुष जानना चाहिये। (होति पुण अहीय पुरिसा પ્રમાણ તુલિત વ્યકિત-પુરૂષ-ઉન્માન યુકત હોય છે તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે ત્રાજવા પર આરેપિત થયેલ પુરૂષ સાર પુલે વડે નિર્મિત લેવા બદલ અર્ધાભર પ્રમાણે થાય છે. એટલે કે તેનું વજન આર્યભાર પ્રમાણ સુધી હોય તે તે પુરૂષ ઉન્માન યુકત માનવામાં આવે છે જે ઉત્તમ પુરૂષ હોય છે તે ઉપર્યુકત માન-ઉન્માન પ્રમાણુ યુક્ત હોય છે તેમજ બીજા शुगथी युताय छे से वात सूत्रा२ व २५०४ ४३ छे. (माणुम्माणपमाणजुत्ता लक्खणवंजणगुणेहिं उबवेया) २ १३५ भान हन्मान प्रभार સમ્પન હોય છે, તેમજ શંખ, સ્વસ્તિક વગેરે લક્ષણેથી, મેષ, તિલક, તલ ५२२ ०ी मनोहर परेकी ५- नय . (उत्तमकुलप्प सुया उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा) GUE Gत्तम सोमा म प्रात ४२ छ, ते For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy