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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८८ द्रव्यप्रमाणनिरूपणम् इत्यादि-रूपो यो विशिष्टः प्रकारस्तेन निष्पन्नमिति भावः। तच मानोन्मानावमानगणिमप्रतिमानभेदैः पञ्चविधम् । तत्र मानं द्विविधं मज्ञप्तम् , तद्यथा-धान्यमान प्रमाणं च रसमानममाणं च । तत्र-धान्यमानप्रमाणम्-मानमेव प्रमाणं-मानप्रमाणम् , धान्यविषयं मानप्रमाणं-धान्यमानप्रमाणम्। तच्च-"द्वे अमृतीप्रसूति रित्यादि है। ये धान्यादिक द्रव्य १ सेर है या दो सेर है। इस प्रकार से जो इनके वजन आदि रूप स्वरूप का निरूपण करने में आता है वह धान्यादिक द्रव्यगत प्रदेशों के सहारे से नहीं होता है किन्तु, १ सेर २ सेर रूप जो विशिष्ट प्रकार रूप विभाग है, तत्साध्य होता है, अर्थात् उससे निष्पन्न होता है इसलिये :स्वगत प्रदेशों को छोड़ कर अपर विभाग से इसकी निष्पत्ति कही गई है। इसी बात को सूत्रकार ने "दो असईओ पसई" इत्यादि रूप से व्यक्त किया है। (विभाग निष्फण्णे पंचविहे पण्णत्ते-तं जहा-माणे, उम्माणे, ओमाणे, गणिमे, पडिमाणे) यह विभाग निष्पन्न द्रव्यप्रमाण मान, उन्मान, अवमान, गणिम प्रतिमान के भेद से पांच प्रकार का कहा गया है । ( से किं तं माणे) हे भदन्त ! वह मान क्या है ? उत्तर- (माणे दुविहे पण्णत्ते) वह मान दो प्रकार का होता है (तं जहा) वे प्रकार ये हैं-(धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्पमाणे य) एक धान्यमान प्रमाण और दूसरा रस मान प्रमाण । धान्य विषयक मानरूप जो प्रमाण है वह धान्यमान प्रमाण है । (से किं तं धन्नमाનિષ્પન્ન થઈ જાય છે. આ ધાન્યાદિક દ્રવ્ય “એક શેર છે કે બશેર છે. આ પ્રમાણે જે એમના વજન વગેરે સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે, તે ધાન્યાદિક દ્રવ્યગત પ્રદેશોના આધારે નહિ પરંતુ ૧ ર, ૨ શેર રૂપ જે વિશિષ્ટ પ્રકાર રૂપ વિભાગ છે તેના આધારે હોય છે, એટલે કે એનાથી જ નિષ્પન્ન હોય છે એટલા માટે જ સ્વાગત પ્રદેશને બાદ કરીને અપર વિભા थी अनी नि०५त्ति उपामा भावी छ. मे पातने सूत्र ‘दो असई ओ पसई' वगेरे ३५मां व्यरत ४री छे. (विभागनिप्पण्णे-पंचविहे पण्णत्तेतजहा-माणे, उमाणे, ओमाणे, गणिमे, पडिमाणे) मा विमा नपन्न द्रव्य પ્રમાણના માન, ઉન્માન, અવમાન, ગણિમ, પ્રતિમાન ભેદથી પાંચ પ્રકાર छ. (से कि त' माणे) 8 सहत! ते भान शुछे ? उत्तर-(माणे दुविहे पण्णत्ते) ते मानना में प्रा२ . (तजहा) ते ४२ मा प्रारी छ. (धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्पमाणे य) धान्य भान प्रमाण भने २स मान प्रमाण (से कि त धन्नमाणप्पमाणे ? धन्नमाणप्पमाणे For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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