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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६४ सप्तस्वरलक्षणनिरूपणम् भवन्ति पृथिवीपतयः । शूराः संग्रहकर्तारः, अनेकगणनायकाः ॥५॥ धैवतस्वरसम्पन्ना भवन्ति कलहपियाः। शाकुनिका बागुरिकाः सौकरिका मत्स्यबन्धाध ॥६॥ चाण्डालामौष्टिकाः सेया ये अन्ये पापकर्माणः । गोघातकाश्च ये चोरा निषाद स्वरमाश्रिताः ॥७॥॥सू० १६४॥ भी इसी प्रकार से खिलाते पिलाते रहते हैं । (पंचमस्सरसंपना हर्वति पुढवीवई) जो पंचमस्वर से युक्त होते हैं वे पृथिवीपति होते हैं। (सूरा संगहकत्तारो अणेगगणनायगा) शरवीर होते हैं, संग्रह करनेवाले होते हैं और अनेक गणों के नायक होते हैं। तथा जा (धेवयस्सरसंपन्ना हवंति कलहप्पिया) जो धैवतस्वरवाले होते है वे कलहप्रिय होते हैं-लड़ाई झगडा करना उन्हें बहुत पसन्द आता है। (साउणियावरगुरिया सोयरिया, मच्छबंधा य) शाकुनिक-पेक्षियों का शिकार करनेवाले, होते हैं, वागुरिक-हरिणों की हत्या करनेवाले, होते हैं, सौकरिक-सुअरों का शिकार करनेवाले, होते हैं, और मत्स्यबंधमछलियों को मारनेवाले, होते हैं ! (चंडाला) तथा जो चांडाल-रौद्रका हैं (मुट्ठिया) मुष्टि से प्रहार करनेवाले हैं (सेया) अधम जातीय हैं-(जे अन्ने पावकस्मिणो) तथा इनसे भिन्न जो पाप कर्मों में परायण बने हुए प्राणी हैं, तथा जो (गोघातगा) गोधात.करनेवाले हैं (जे चोरा) जो चोरी करनेवाले हैं (णिसायं सरमस्सिया)वे सब निषाद स्वर से आश्रित મુજમ તૃપ્તિદાયક સુસ્વાદુ ભોજન મેળવે છે. દૂધ વગેરે પીવે છે. બીજાઓને. ५५ वी शत म त पीडा २९ छे. (पंचमस्सरसंपन्ना हवंति, पुढवीवई) २॥ यम २१२ सपन्न डायतमा पृथ्वीपति डाय छे. (सूरा संगहकत्तारो अणेगगणनायगा) शूरवीर डाय छ, सब ४२नार डाय छे. भने 4 गाना नेता डाय छे (घेवयस्सरसंपन्ना) तेभ रे धैवत २१२१ सय छे. (हवंति कलहप्रिया) ते ४ प्रिय जय छ ans, ४४ास, त४२२ तभने मह गमे छे. (साउणिया वग्गुरिया सोयरिया, मच्छबंधा य) - નિક-પક્ષીઓને શિકાર કરનાર હોય છે વાગુરિક-હરની હત્યા કરનારા હોય છે સૌકરિક-સૂવરનો શિકાર કરે છે અને મત્સ્ય બંધ-માછલીઓને भारना२ डाय छे. (चंडाला) तम यांse-N -, (मुद्रिया) भुमिका ४२॥२॥ हाय छे. (सेया) अधम त य छ (जे अन्ने पावकम्मिणो)" तेभर मेमनाथी मिन्न २ पापमा २१ २२ छ तथा २ (गोपातगा) गाव ४२॥२ जाय छ (जे चोरा) २ यारी ४२॥२॥ छ. (णिसाय सर.. अ० १०१ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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