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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५० अनुयोगद्वारसूत्रे 3. भङ्गा- 'अस्ति नाम औदयिकौपशमिक निष्पन्नम्' इत्यारभ्य 'अस्ति नाम 'अस्ति नाम क्षायोपशमिकपरिणामिक निष्पन्नम् इत्यन्ता बोध्याः । एषु औदयिकेन सह औपशमिकादि भावचतुष्टयसंयोगात् चत्वारो भङ्गाः, औपशमिकेन सह क्षायिकादिभावत्रयस्य संयोगात् त्रयो भङ्गाः, क्षायिकेण सह क्षायोपशमिकादि भावद्वयसंयोगात् द्वौ भङ्गौ, तथा - क्षायोपशमिकेन सह शब्दार्थ - ( एत्थ णं जे ते दस दुगसंयोगा, ते णं इमे) यहां जो दो दो भावों के संयोग से भाव निष्पन्न होते हैं वे इस प्रकार से है(अस्थामे उपवसमियनिष्कण्णै ? ) पहिला औदयिक और औपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव एक, (अस्थिणामे उदयखाइग निष्फoणे २) दूसरा औदधिक और क्षायिक के संयोग से निष्पन्न, भाव ( अस्थिणामे उदश्यखओवसमनिष्कण्णे) तीसरा - औद्धिक और क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणामे उदश्यपारिणामियनिष्कण्णे) चौधा औदयिक और पारि णामिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थि णामे उवसमियवइय निष्क०) पांचवा - औपशमिक और क्षायिक के संयोग से निधन भाव (अथणामे उसमय खओवसमियनिष्कण्णे) छठा - औपशमिक और क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणा मे उवसमियपारिणामियनिष्oणे) सातवां-औपशमिक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्नभाव (अस्थिणामे खहय, खओवसमियनिष्कणे) आठवां- क्षायिक और क्षायोपशमिक के संबन्ध से निष्पन्नभाव (अस्थिणामे खइय पारि शब्दार्थ - ( एत्थ णं जे ते दस दुगसंयोगा, तेणं इमे ) मज्जे भावना सथा. गयी ने इस भावो निष्पन्न थाय छे ते नीचे प्रभा छे - ( अस्थिणा मे उदहब समय निण्णे) (1) मोहयि भने भौपशभिना संयोगयी निष्यन्न लाव . ( अस्थिणामे उदयखाइयनिप्फण्णे २) (२) मोहयि भने क्षायिना सयोगथी निष्पन्न थयेलो भाव (अथिणामे उदय खओवसमनिष्कण्णे३) (3) मौि अने क्षायोपशभिम्ना सयोगी निष्पन्न थयेो भाव (अत्थिणा मे उदइय पारिणामिव निष्कण्णे) (४) मोहयिक समने पारिश्राभिना संयेोगयी निष्यन्न भाव (अत्थि मे उवखमियखइयनिप्फण्णे ) (५) सोपशमि भने क्षायिना 'सयोगयी निष्पन्न भाव (अस्थिण मे उवसमियखओवस मियनिःकण्णे) (९) श्रीयशभिङ भने क्षायोपशमिठना सयोगयी निष्यन्न थयेो भव (अस्थिणा मे मिपारिणामिनिफण्णे) (७) भोपशमि भने पारिशाभिना साथीगयीं निष्यन्न लाव (अस्थिणा मे खइयखओवस मियनिष्फण्णे ) (८) સાયિક For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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