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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५७ सान्निपातिकभावनिरूपणम् ७५ भवसिद्धिकान्तो बोध्यः। धर्मास्तिकायादयोऽनादिकालादेच तत्तद्रूपतया परिणताः सन्ति, अत एषामनादिपारिणामिकत्वम् । एतदुपसंहरन्नाह स एषोऽनादिपारि णामिक इति। पारिणामिको भावः प्ररूपित इति सूचयितुमाह-स एष पारिणामिक इति ।।सू० १५६॥ अथ सान्निपातिकं नाम प्ररूपयति मूलम्-से किं तं सण्णिवाइए? सण्णिवाइए एएसि व उदइय उवसमिय-खइय-खओव समियपारिणामियाणं भावाणं दुगसंजोएणं तियसंजोएणं चउकसंयोएणं पंचगसंजोएणं जे उत्तर-(अणाइपारिणामिए धम्मस्थिकाए, अधम्मस्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पुग्गलस्थिकाए, अद्धासमए, लोए, अलोए, भन. सिद्धिया अभवसिद्धिया) अनादि पारिणोमिक धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय, लोक, अलोक भवसिद्धिक अभवसिद्धिक है । (से तं अणाइपारिणामिए) यह अनादि पारिणामिक है । तात्पर्य इसका यह है कि धर्मास्तिकायादिक अनादि काल से ही उस २ रूप से परिणत हैं । इसलिये इनमें अनादि पारिणामिकता है। (से तं पारिणामिए) इसप्रकार पारिणामिक भाव का निरूपण है ॥ सू० १५६ ॥ प्रश्न-(से कि त अगाइ पारिणामिए?) 3 ! मन पारिभि ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर-(अणाइ पारिणामिए धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, बागोसस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पुग्गलथिकाए, अद्धासमए, लोए, अलोए, भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया) धर्मास्तिय, अपमास्तिय, भातिय, पतिय, पुरता. स्तिय, मद्धासमय (14), ४, Rals, मपसिद्धिअरे ARTAlt આ ભાવે અનાદિ પરિણામિક છે ધમસ્તિકાય આદિ અનાદિ કાળથી જ ધર્માસ્તિકાય આદિ રૂપે પરિણત હોવાને કારણે તેમને અનાદિ પરિણામિક लाव द्या छ. (से तअणाइ पारिणामिए) 0 Rनु मनाहि पारिभिः भानु २१३५. छे. (से त पारिणामिए) सा परिणाम भने मनाया. થામિક ભાવનું નિરૂપણ સમાપ્ત થવાથી પરિણામિક ભાવનું કથન અહીં પૂરું થાય છે. સૂ૦૧૫દા भ० ९४ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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