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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अनुयागद्वारा ........ Il विरूपः कुत्सितो भङ्गो विभङ्गः, स एव ज्ञान-विभङ्गज्ञानम्-ज्ञानत्वं चास्य अर्थपरिज्ञा. नात्मकत्वाद् नांव्यम् । मिथ्याष्टिदेवादेरवधिज्ञानं विभङ्गज्ञानमुच्यते । विभङ्गज्ञानस्यलब्धि-विभङ्गज्ञानलब्धिः। इयमपि स्वावरणक्षयोपशमेनैव भवति, अतोऽस्या अपि क्षायोपशमिकीत्वं बोध्यम् । एवं मिथ्यात्वादिकर्मणः क्षयोपशमसाध्याः शेषा अपि सम्यग्दर्शनादिलब्धयो यथासम्भवं भावनीयाः। तथा-क्षायोपशमिकी वीर्यलब्धिःइयं हि वीर्यान्तरायकर्मक्षयोपशमाद भवति। एवं-पण्डितवीर्यलब्धिः, बालवीर्यलब्धिः, चक्खुदंसणलद्धी) क्षायोपशमिकीचक्षुः दर्शन लब्धि, (अचक्खुदंसणलद्धी, ओहिदंसणलद्धी) अचक्षुदर्शनलन्धि अवधिदर्शनलब्धि है। इन में चक्षुर्दर्शनावरण के क्षयोपशम से चक्षुर्दर्शन लब्धि, अचक्षुर्दर्शनावरण के क्षायोपशम से अचक्षुर्दर्शनलब्धि और अवधिदर्शनावरण के क्षयोपशम से अवधिदर्शनलब्धि होती है। (एवं सम्मदसणलद्धी, मिच्छादसणलद्धी सम्ममिच्छादसणलद्धी) इसप्रकार से सम्यकदर्शनलब्धि, मिथ्या. दर्शनलब्धि (खओवसमिया सामाइयचरित्तलद्धी, एवं छेयोवट्ठावणलद्धी, परिहारविसुद्धिलद्धी सुहुमसंपरायचरित्तलब्धि एवं चरित्ताचरित्सलद्धी) क्षायोपशमिकी सामायिक चरित्रलब्धि छेदोपस्थापनालन्धि, परिहारविशुद्धिक लब्धि, सूक्ष्म संपरायचारित्रलब्धि, चारित्राचरित्रलब्धि (खओव समिया दाणलद्धी, एवं लाभलद्धी, भोगलद्धी, उपभोगलद्धी) क्षायोपश. मिकी दानलब्धि लाभलब्धि, भोगलब्धि उपभोगलब्धि, (खभोवसमिया (खओवसमिया चक्खुदसणलद्धी) क्षायो५मिमी यक्षः शनय, (अवखुदसणलद्धी, ओहिदसणलद्धी) अयश नसDिE मने साधन પણ ક્ષપશમ નિષ્પન્ન ક્ષાપશમિક ભાવરૂપ છે, કારણ કે ચક્ષુદર્શનાવરણ કર્મના ક્ષયે પશમથી ચક્ષુદર્શનલબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે, અચક્ષુર્શનાવરણ કર્મના ક્ષયે પશમથી અચક્ષુદ્દશનલબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે અને અવધિદર્શનपरशुना क्षयोपशमी पNिDी प्राप्ति थाय छे. (एव' सम्मदंपणलद्धी, मिच्छादसणलद्धो, सम्ममिच्छादसणलद्धी) मे प्रमाणे सभ्यनिधि, भियानसधि, सभ्यभूमिथ्याशनalou, (ख ओवधमिया सामाइयचरितलद्धी, एवं छेयोवढावणलद्धी, परिहारविसुद्धिलद्धी) क्षायो५मिती सामायि न्यास्त्रिय, छे४।५स्थापना, परिक्षा२विशुद्धिप्रधि, (सुहमसंपराय चरित्सलद्धी, एवं चरित्ताचरित्तलद्धी) सूक्ष्म स५२।५ यरित्र , यारित्रायाaalou, (ख ओवसमिया दाणलद्धी, एवं लाभलद्धी, भोगलद्धी, उपभोगलद्धी) સાપશમિકી દાનલબ્ધિ, લાભલબ્ધિ, ભેગલબ્ધિ અને ઉપગલબ્ધિ, (सभोवसमिया वीरियलद्धी) आयो५मिवायध, (एवं पंडियवीरियसली, For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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