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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27. अनुयोगचन्द्रिका टोका सूत्र १५५ क्षायोपशमिकभावनिरूपणम् ७३५ 'प्रातिहि तत्तदावरणकर्मक्षयोपशमजन्या बोध्या। केवलज्ञानलब्धिस्तु तदावरण कर्मणः क्षय एवोत्पयते अतोऽत्र नोक्ता। तथा-क्षायोपशमिकी मत्यज्ञानलब्धि:अज्ञान-कुत्सितं ज्ञानम्-अज्ञानम्, कुत्सार्थेऽपि नबोवृत्तिः, कुत्सितं-शीलम्शीलम् इत्यादौ तथा दृष्टत्वात् , मतिरेवाज्ञानं मत्यज्ञानं तस्य लब्धिः योग्यते स्वावरणक्षयोपशमेनैव निष्पयते । कुत्सितस्वं चास्य मिथ्यादर्शनोदयषितवार पाँध्यम् । एवं क्षायोपशमिकी श्रुतंज्ञानलम्धिरपि बोध्या। तथा-क्षायोपशामक विमानलब्धिः भामकारो भेदइति पर्यायाः। भङ्गशब्दस्त्विह प्रक्रमादवधिवाचका ज्ञानालब्धि अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होती है, और मनापर्यवज्ञानलब्धि मनः पर्यवज्ञानावण कर्म के क्षयोपशम से होते है। इसलिये इन लब्धियों कोक्षायोपशमिक कहा है। केवलज्ञानलब्धि के सूत्रकार ने जो यहां नहीं कहा है उसका कारण यह है कि यह बलज्ञानावरणकम के क्षय से होती है। (खओवसमिया मह अण्णा लद्धी, खमोवसमिया सुय अण्णाणलद्धी, खीवसमिया विभंगणाण लद्धी ) मंतिअज्ञानावरण के क्षयोपशम से मति अज्ञान, श्रुतअज्ञानी वरण के क्षयोपशम से श्रुमज्ञान, विभंगज्ञानावरण के क्षयोपशम से विभंगज्ञान की प्राप्ति होती है, इसलिये इन्हें क्षायोपशिमिकी मत्यज्ञान लन्धि, क्षायोपशमिकी श्रुताज्ञानालब्धि और क्षायोपशमिकी विभी झान लब्धि कहा है। कुत्सित ज्ञान का नाम अज्ञान है । कुत्सित और में भी न होता है। जैसे कुत्सितशील अशील आदि (खीवसमिय અવધિજ્ઞાન લખિની અને મન પર્યવજ્ઞાનાવરણના ઉપશમથી મનપવાન લબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે. તે કારણે તે લબ્ધિઓને પથમિક કહેવામાં આવી છેઅહીં સૂત્રકારે કેવળજ્ઞાન લબ્ધિને ઉલેખ કર્યો નથી, કારણ કે કેવળજ્ઞાનાવરણ કર્મના ક્ષયથી જ કેવળજ્ઞાન લબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે, क्षयोपशमयी तनी प्राति त नथी......... (खोवसमिया मइ अण्णाणलद्धी, ख भोवसमिया सुय अण्णाणलद्धी, खोपसमिया विभंगणाणलद्धी) मति मज्ञानावरना क्षयोपशमयी मति अज्ञान, થતઅજ્ઞાનાવરણના ક્ષયોપશમથી થતાજ્ઞાન અને વિભંગાનાવરણના ક્ષયે પશમથી વિજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ થાય છે. તેથી તેમને ક્ષાપશમિકી મઝાન રષિ, લાપશમિકી મૃતાજ્ઞાનલબ્ધિ અને ક્ષાપશમિકી વિભજ્ઞાનલબ્ધિ કહેવામાં આવેલ છે. કુત્સિત જ્ઞાનનું નામ અજ્ઞાન છે. કુત્સિતના અર્થમાં પણ नब (ना२ पा) न प्रयो. थाय छ. २ , इत्सितशीद, मशॉ its. म . " . For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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