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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगदारसूत्र अङ्गानि. अतम, नो श्रुतानि, स्कधः नो स्कघाः नो अध्ययनम् अध्ययनानि, नो उदेशो नो उद्देशाः ॥सू० ६॥ टीका-'आवस्सयं णं' इत्यादि आवश्यकं खलु किं द्वादशान्तर्गतमेकमङ्गमिदम् ? किं वा अङ्गानि-बहून्यगानि। तथा किं श्रुतं श्रुतानि ? आवश्यकं किमेकश्रुतरूपं किंवाऽनेकश्रुतरूपम् ? तथा किं स्कन्धः स्कन्धाः-किमेकः स्कन्धः, बहवो वा स्कन्धाः !। तथा अध्ययनम् अध्ययनानि आवश्यकमिदं किमेकमध्ययनं किं वा बहून्यध्ययनानि। तथा उद्देश-उद्देशा वा-किम्-एक उद्देशा वा बहवो वा उद्देशाः इति दश प्रश्नाः। उत्तरयति-'आवस्सयं णं' इत्यादि । आवश्यकं खलु नो एकाङ्गरूपं नैवा उत्तर-(आवस्सयं णं नो अंगं नो अंगाई) अनंग प्रविष्टरुप श्रुत होने के कारण आवश्यक सूत्र-न एक अंगरूप है। और न अनेक अंगरूप है। "सुयं नो सुयाई" यह तो एक श्रुतरूप है । अनेक श्रुतरूप नहीं है। (खंधो नो खंगा) एक स्कंधरूप है, अनेक स्कंधरूप नहीं है। (नो अज्झयणं, अज्झयणाई) षड् अध्ययन स्वरूप होने से यह एक अध्ययनरूप नहीं हैं किन्तु अनेक अध्ययनरूप है । (नो उद्देसो नो उद्देसा) यह न एक उदेशरूप है और न अनेक उद्देशरूप है। इसका तात्पर्य यह है कि यह आवश्यक मत्र एक श्रुत स्कंधात्मक और पडू अध्ययनरूप हैं। यह एक अंगरूप और अनेक अंगरूप नहीं है। अनेक श्रुतस्कंधरूप नहीं है और न एक अध्ययनात्मक है, न एक.और अनेक उद्देशरूप ही है। ___शंका-यहां ये दो प्रश्न हैं कि “यह आवश्यक सूत्र १ अंगरूप है या अनेक अंगरूप है" करने योग्य ही नही प्रतीत होते-क्यों कि यह सूत्र नन्दि उत्तर-(आवस्सयं णं नो अंग नो अंगाई) मा प्रविष्ट श्रुत३५ पाने કારણે આવશ્યક સૂત્ર અક અંગરૂપ પણ નથી, અને અનેક અંગરૂપ પણ નથી. (सुर्य नो सुयाइ) ते मे श्रुत३५ १ छ. भने श्रुत३५ नथी, (खंधा नो खंधा) त: २४३५ छ, भने २४५३५ नथी, (णो अज्झयणं, अज्झयणाई) ते ६ અધ્યયનેવાળું હોવાને લીધે તેને એક અધ્યયનવાળું કહી શકાય નહીં, પણ અનેક मध्ययनवाणु ४डी शाय. (नो उद्देसो, नो उद्देसा) ते मे ७६५३५ पशु नयी અને અનેક ઉદ્શરૂપ પણ નથી. આ કથનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે-આવશ્યક સૂત્ર એક શ્રુતસ્કંધાત્મક અને છ અધ્યયનવાળું છે, તે એક અંગરૂપ પણ નથી અને અનેક અંગરૂપ પણ નથી, તે અનેક શ્રતસ્કંધરૂપ પણ નથી, તે એક અધ્યયનાત્મક પણ નથી, અને એક અથવા અનેક ઉદ્શરૂપ પણ નથી. : શંકા–“આવશ્યક સૂત્ર એક અંગરૂપ છે? કે અનેક અંગરૂપ છે?” આ બે પ્રશ્નો અહીં પૂછવા જોઈતા ન હતા, કારણ કે આપે જ આગળ એવી વાત કરી For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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