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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७४ अनुयोगद्वारसूत्रे त्ति नामियं, खलु ति नेवाइयं, धावइत्ति अक्खाइयं, परित्ति ओवसग्गियं, संजए ति मिस्सं। से तं पंचनाम ॥सू०१५०॥ ____ छाया-अथ किं तत् पश्चनाम? पश्चनाम पञ्चविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथानामिक, नैपातिकम् , आख्यातिकम् , औपसर्गिकं, मिश्रम् । अश्व इति नामिकम् । 'खलु' इति नैपातिकम् । 'धावति' इति आख्यातिकम् । 'परि' इति औपसर्गिकम् । संयत इति मिश्रम् । तदेतत् पश्चनाम ॥मू० १५०॥ टीका-'से कि तं' इत्यादि शिष्यः पृच्छति-अथ किं तत् पश्चनाम? इति। उत्तरयति-पश्चनाम-पश्चप्रकारकं नाम-पश्चनाम, तद्धि पञ्चविधं प्रज्ञप्तम् । पञ्चविधस्वमेवाह-नामिकमित्यादि । तत्र-अश्व इति नामिकम्-वस्तुवाचकत्वात् । 'खलु' इति नैपातिकम्निपातेषु पठितत्वात् । धावतीति आख्यातिक क्रियाप्रधानत्वात् । 'परि' इति अब सूत्रकार पश्चनाम का निरूपण करते हैं"से कि तं पंचनामे" इत्यादि। शब्दार्थ-(से किं तं पंचनामे ? ) हे भदन्त ! पंचनाम क्या है ? उत्तर-(पंचनामे पंचविहे पण्णत्ते) पंच नाम पांच प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा) उस के पांच प्रकार ये हैं-(नामियं, णेवाइयं, अक्खाइयं, ओवसगियं मिस्स) नाभिक नैपातिक, आख्यातिक, औपसर्गिक, और मिश्र। वस्तु का वाचक होने से (आसेत्ति नामियं)-अश्व यह शब्द नामिक है । (खलुत्ति नेवाइयं) खलु शब्द निपानों में पठित होने के कारण नैपातिक है। क्रियाप्रधान होने से (धावइत्ति अक्खाइयं) धावति" यह तिङ्गन्त पद आख्यातिक है। (परित्ति ओवसग्गियं) परि હવે સૂત્રકાર પંચનામનું નિરૂપણ કરે છે“से किं तं पंचनामे" त्या:शहाथ-(से किं तं पंचनामे १) सन् ! ५ याम ने छ ? उत्तर-(पंचनामे पंचविहे पण्णत्ते) ५यनाम पांय ४२ ॥ . (तंजहा) २। नये प्रमाणे छ-(नामियं, णेवाइयं, ओवसग्गियं, मिस्सं) (१) नाभि, (२) नेपाति, (3) आध्याति:, (४) मोपसन मने () मिश्र __ पस्तुनु वाय पाने ४॥२ (आसेत्ति नामिय) " A " ५४ नाभि. ॥ २६५ ३५ सभा (खलुत्ति नेवाइयं) " म" ५६ निपातमा १५२॥तु डावाने २0 नेपातिन SIS२५ ३५ सभा (धानइत्ति अक्खा. इत्यं) " धावति" ! ५४ याप्रधान पाने २२ माभ्यातिन GIR२५] For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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