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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४९ चतुर्नामनिरूपणम् सागया' दण्डस्य-अंग्रे दण्डायम् , सा-भागता साऽऽगता' इत्यादि बोध्यम् विकारो हि वर्णस्य स्थाने वर्णान्तरापादनरूपः । नामत्वंचात्र तेन तेन रूपेण नमनात परिणमनाद् बोध्यम् । लोके हि यान्तः शब्दास्ते आगमाघन्यतमनिष्पन्ना एव सन्ति । ये च डित्य डवित्थादयः कैश्चिदव्युत्पन्नत्वेनाभिमतास्तेऽपि शाकटायनमते व्युत्पन्ना एव । उक्तंच "नाम च धातुजमाह निरुक्ते, व्याकरणे शकटस्यच स्तोकम् (अपत्यम्)। यन्न पदार्थविशेषसमुत्थं, प्रत्ययतः प्रकृतेश्च तदृह्यम्" ॥इति॥ इत्थं च सर्वेषां शब्दानामागमादिभिश्चभिः संग्रहादिदमागमादिकं चतुर्नामेत्युच्यते। प्रकृतमुपसंहरन्नाह-तदेतच्चतुर्नामेति ।मु० १४९॥ इह-नईह महु+उदगं+महूदगं, बहू+ऊहो-बहूहो। दण्ड+अग्र-दण्डाग्र सा+ आगता-सागता दधि+इदं धीदं नदी+इह-नदीह, मधु+उदक-मधूदक, वधू+ऊह वधूहः (से तं विगारेणं) इस प्रकार के ये शब्द विकार निष्पन्न नाम हैं । (से तं च उणामे ) ये पूर्वोक्त चतुर्नाम हैं। भावार्थ-आगम निष्पन्न, लोप निष्पन्न, प्रकृति निष्पन्न और विकार निष्पन्न इस प्रकार से चतुर्नाम चार प्रकार के होते हैं। आगम रूप अनु. स्वार से जो शब्द निष्पन्न होते हैं वे आगम निष्पन्न चतुनीम है जैसे प्राकृत भाषा में वंक, वयंसे, अई मुंतए ये शब्द हैं। "वक्रादावन्तः" इस सूत्र से प्राकृत भाषा में वक्रादि शब्दो में आगमरूप अनुस्वार होता है। "व" शब्दकी संस्कृत छाया "वक्रम्" है। वयंसे "शब्द की अग्ग-दंडग्गं, सा+आगया साऽऽगया, दहि इणं-दहीणं, नईxइह-नईह, महुx उदगं-महूदगं, बहूxअहो बहूहो) + म श्र, सा+आगतासमता, दधिx इदधी, न दी , मधु+उदक-भy६४, वधू ऊह-वधूः (से तं विगारेणं) मा मा शाही वि२नि०५-न नाभा छे. (से तं चउणामे) ॥ मयां નામો પૂર્વોક્ત ચતુર્નામ રૂપ ગણાય છે. ભાવાર્થ-ચતુર્નામના ચાર પ્રકાર છે-આગમનિષ્પન, લેપનિષ્પન્ન, મકતિનિષ્પન્ન, અને વિકારનિષ્પન આગમ રૂપ અનુસ્વાર વડે જે જે શબ્દો અને તેમને આગમનિષ્પન્ન ચતુર્નામ રૂપ સમજવા જેમ કે પ્રાકૃત ભાષાના "वंक, वयंसे सने अइमुंतए" ! शो मागमनिष्पन्न यतुमा छे. " वादावन्तः" मा सूत्र मे पात ४८ ४२ छ । प्राकृत भाषामi Ane शण्डीमा माराम ३५ अनुस्वार डाय छे. “वं" मा सात जना सस्कृत छाया "वक्रम् ” छे. “वयंसे" या प्रात पहनी सत For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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