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अनुयोगद्वारसूत्रे
तु संमूर्च्छन्ति तथाविधकर्मोदयाद् गर्भमन्तरेणैवोत्पद्यन्ते ते सम्मूर्छिमाः । येषां तु गर्भे व्युत्क्रान्तिः = उत्पत्तिस्ते गर्मव्युत्क्रान्तिकाः । परिसर्पन्ति ये ते परिसर्पाः । ते हि - उरः परिसर्प - भुजपरिसर्पभेदाभ्यां द्विमकाराः । तत्र - उरः परिसर्पाः सर्पादयः । भुजपरिसर्पास्तु गोधानकुलादयः । इति । प्रकृतमुपसंहरन्नाह तदेतद् द्विनामेति ॥ सू० १४५ ॥
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ही जान लेनी चाहिये जैसे- (अविसेसिए जीवदन्ये, विसेसिए गैरइए तिरिक्खजोणिए, मणुस्से देवे) जीव द्रश्य ऐसा नाम अविशेषित द्विनाम है तथा नारक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य, देव ये विशेषित द्विनाम हैं। (रइए अविसेसिए) नैरयिक यह अविशेषित द्विनाम है और ( रयणपate सक्कर प्पहाए, वालुअप्पहाए, पंक पहाए, धूमप्पहाए तमाए, तमतमाए विसेसिए) रत्नप्रभागत नैरथिक, शर्करा प्रभागत नैरयिक, वालुका प्रभागत नैरयिक, पंक प्रभागत नैरयिक, धूम प्रभागत नैरयिक, तमःप्रभागत नैरयिक तमस्तमःप्रभागत नैरयिक ये विशेषित द्विनाम हैं। आगे भी इसी प्रकार से सूत्र के अन्त तक प्रत्येक भेद में अविशेषित और विशेषित द्विनाम की योजना कर लेनी चाहिये । सूत्र सुगम होने से आगे के पदों की व्याख्या नहीं की है। संमूच्छिम वे जीव हैं जो तथाविध कर्म के उदय से गर्भ के विना ही उत्पन्न हो जाते हैं । व्युत्क्रान्ति का तात्पर्य उत्पत्ति है। जिन जीवों की उत्पत्ति
( अविसेसिए जीवदव्वे, विसेसिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से, देवे ) 'लवद्रव्य ' या नाम अविशेषित द्विनाभ छे, तथा नार४, तियय, मनुष्य भने हेव, આ ચારે વિશેષિત દ્વિનામેા છે.
( रइए अविसेसिए) 'नार' या नामने ले भविशेषित द्विनाभ वामां आवे तो ( रयण पहाए, सक्करपहाए, वालुअ पहाए, पंकपहाए धूमप्पgic, axıę, axanıq faàfag) Requenal airs, 218214gal diŔs, તાલુકાપ્રભાના નારક, પંકપ્રભાના નારક, ધૂમપ્રભાના નારક, તમઃપ્રભાના નારક, અને તમસ્તમઃપ્રભાના નારકને વિશેષિત દ્વિનામ કહે છે, એજ પ્રકારે સૂત્રના અન્ત સુધીના પ્રત્યેક લેકમાં અવિશેષિત અને વિશેષત દ્વિનામની યાજના કરી લેવી જોઈએ સૂત્ર સુગમ હાવાથી પછીનાં પદ્માની વ્યાખ્યા આપવામાં આવી નથી જે જીવા તથાવિધ ક્રમના ઉદ્દયથી ગભ વિના જ ઉત્પન્ન થઈ જાય છે, તે જીવાને સમૂ`િછમ જીવે કહે છે. વ્યુત્ક્રાન્તિ बहनो अर्थ' ' उत्पत्ति' थाय छे ? बोनी
(
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उत्पत्ति गर्ल भन्थी थाय छे,
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