________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३८ उत्कीर्तनानुपूर्वीनिरूपणम् भेदेन त्रिविधा प्रज्ञप्ता। तत्र-पूर्वानुपूर्वी-ऋषभादि वर्द्धमानान्ता । सर्वपथमोत्पन्नाद् ऋषभस्य प्रथममुरादानम् । तदनन्तरं क्रमेण अजितादय उक्ताः। पश्चानुपूर्वी तुप्रकार की कही गई है। (तं जहा) उसके वे प्रकार ये हैं-(पुव्वाणुपुत्री, पच्छाणुपुत्री, अणाणुपुव्वी) पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । उत्कीर्तन शब्द का अर्थ नाम का उच्चारण करना ऐसा है । इस उत्कीतन की जो परिपाटी है उसका नाम उत्कीर्तनानुपूर्वी है। (से कि तं पुव्वाणुपुब्बी) पूर्व प्रकान्न पूर्वानुपूर्वी क्या है ? । ___उत्तर-(उसभे अजिए संभवे अभिणंदणे, तुमई, पउमप्पहे, सुपासे, चंदपहे, सुविही, सीबले, सेज्जं से, वासुपुज्जे, विमले, अणते, धम्मे, संनी, कुंथू, अरे, मल्ली, मुणिसुधए, णमी, अरिट्टणेनी, पासे, वद्धमाणे, से तं पुवाणुपुची) ऋषभ, अजिल, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व, और वर्द्धमान । इस प्रकार परिपाटिरूप से नामो. च्चारण करना इसका नाम उत्कीर्तनानुपूर्वी का प्रथम भेद पूर्वानुपूर्वी है। ऋषभनाथ सब से प्रथम उत्पन्न हुए हैं। इसलिये उनका प्रथम नामोच्चारण किया है। तदनन्तर क्रमशः अन्य अजित आदि हुए हैं इसलिये उनका नामोच्चारण हुआ है। पश्चानुपूर्वी में बर्द्धमान को नीय प्रमाण १२ ४छ-(पुवाणुपुठवी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुपुव्वी) (१) पूर्वानुपूवी, (२) ५श्व नुपूवी अन (3) मनानुपूवी.
"मनु या ४२वु" मेरो श्रीन माहीत ननी (नाम ઉચ્ચારણ કરવાની) જે પરિપાટી (પદ્ધતિ) છે, તેનું નામ ઉત્કીર્તનાનુપૂવી છે.
प्रश्न-(से किं तं पुवाणुपुरी') लगवन् ! पूर्वानुपूवी नुस्१३५ छ ?
उत्तर-(उसभे, संभवे, चंदप्पहे. सुविही, सीयले, सेज्जंसे, वासुपुज्जे, विमले, अणंते, धम्मे, संती, कुंथू, अरे, मल्ली, मुणिसुव्वए, णमी, अरिडणेमी, पासे, वद्धमाणे, से तं पुव्वाणुपुव्वी) अपन, मलित, सम, मनिनन, भुमति, पमन, सुपाश्व प्रन, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, पासुन्य, विभत, अनन्त, यम, शान्ति, न्यु, १२, भसी, मुनिसुनत, नभि, मरि. ષ્ટનેમિ, પાર્શ્વ અને વર્ધમાન, આ પ્રકારે પરિપાટી રૂપે નામેચ્ચારણ કરવું તેનું નામ પૂર્વાનુમૂવી છે. તે ઉત્કીર્તનાનુપૂવીના પ્રથમ ભેદ રૂપ છે. બાષભનાથ ભગવાન સૌથી પહેલાં થઈ ગયાં હોવાથી તેમના નામનું ઉચ્ચારણ સૌથી પહેલાં કરવામાં આવ્યું છે. ત્યાર બાદ અજિત આદિ તીર્થકરે ક્રમશઃ થઈ ગયા હોવાથી તેમના નામનું કમશઃ ઉચ્ચારણ કરાયું છે,
For Private and Personal Use Only