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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३७ औपनिधिकीकालानुपूर्वीनिरूपणम् ५९ रत्ते, पक्खे, मासे, उऊ, अयणे", समय आवलिका, आन, प्राण, स्तोक लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन (संवच्छरे) संवत्सर (जु. गे) युग, (वाससए) वर्षशत (वाससहस्से) वर्ष सहस्र, (वाससयसहस्से) वर्षशतसहस्र, (पुन्चंगे) पूर्वाङ्ग (पुब्वे) पूर्व (तुडियंगे) त्रुटितांग) (तुडिए) त्रुटित, (अडडंगे) अटटाङ्ग (अडडे) अटट (अववंगे) अववाङ्ग (अ. घवे) अवय (हुहुअंगे) हुहुकाङ्ग (हुहुए) हुहुक (उप्पलंगे) उत्पलाङ्ग (उ. प्पले) उत्पल (पउमंगे) पद्माङ्ग (पउमे) पद्म (णलिणंगे) नलिनाङ्ग (गलिणे) नलिन (अत्यनिरंगे) अर्थ निपूराङ्ग (अथनिउरे) अर्थ निपूर (अरअंगे) अयुताङ्ग (उए) अयुन (न उअंगे) नयुनाग (नउए) नयुत (पउअंगे) प्र. युताङ्ग (पउए) प्रयुन (चूलिअंगे) चुलिकांग (चूलिया) चूलिका (सीस प. हेलिअंगे) शीर्षप्रहेलिकाङ्ग (सीमपहेलिया) शीर्षप्रहेलिका (पलिओषमे) पल्योपम (सागरोवमे) सागरोपम (ओसप्पिणी) अवसर्पिणी (उस्सपिणी) उत्सर्पिणी) (पोग्गलपरिय?) पुद्गलपरिवर्त्त (अईयद्धा) अतीताद्धा (अणागयदा) अनागताद्धा (सबद्धा) सर्वाद्धा। यह पूर्वानुपूर्वी हैं। सम. य का स्वरूप आगे स्वयं सूत्रकार कहेंगे। यह काल का सब से सूक्ष्म अंश है । इससे ही समस्त प्रमाणों की आलिका आदिकों की - उ. पक्खे, मासे, उऊ. अयणे,) समय, पलिया, मान, प्राण, स्ते, स१, भुडूत, मात्र, ५५, मास, तु, अयन, (संवच्छरे, जुगे) सत्स२, युग, (वाससए) व शत, (वाससहस्से) १'सहस, (वाससयसहरसे) १५शत सस (म.) (पुव्वंगे, पुने) पू , पू (डियंगे, तुडिए,) त्रुटितin, बुरित, (अडडंगे, अडडे) ५८in, २५८, (अववंगे, अववे) भवन, ११, (हुहुअंगे, हुहुए) in, ४, (उप्पलंगे, उप्पले) ७५in, G५९ (पउमंगे, पउमे) ५मान, ५५, (गलिणंगे, णलिगे) नविन, नलिन, (अत्यनिऊरंगे) म1ि , (अत्थनि ऊरे) अनि५२, (अउऊ) मयुतin, (अउए) अयुत, (नउअंगे, नए) नयुतांश, नयुत, (पउअंगे) प्र-in, (13ए) प्रयुत, (चूटिअंगे) यूxिin, (चूरिया) यूलित, (सीमपहेलिअं) २५ प्रतिsion, (सीसपहेलिया) प्रडेवि, (पलिओवमे) पक्ष्या५म, (सागरोवमे) सा॥१५म, (ोसप्पिणी) अस4 ए0, (उस्सप्पिणी) सि!ि, (पोग्गलपरियट्टे) पुरस५२. पत्त, (अईयद्धा) अताताद्धा, (अणागयद्धा) मन मताद्धा, (सव्वद्धा) सर्वानी, આ ક્રમે પદોને ઉપન્યાસ કરે તેનું નામ પૂર્વાનુ પૂર્વી છે. કાળના સૌથી સૂક્ષમ અંશનું નામ “સમય” છે. સૂત્રકાર પોતે જ તેનું સ્વરૂપ આગળ , સમજાવાના છે. તે સમયને આધારે જ આવલિકા આદિ કાળ પ્રમાણેની अ० ७५ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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