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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३७ औपनिधिकीकालानुपूर्षीनिरूपणम् ५९१ उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्टे, अईयद्धा, अणागयद्धा, सव्वद्धा। से किं तं पच्छाणुपुबी? पच्छाणुपुवी-सव्वद्धा अणागयद्धा जाव समए । से तं पच्छाणुपुठनी। से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुवी-एयाए व एगाइयाए इगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेतं अणाणुपुठवी । अहवा ओवणिहिया कालाणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाणु. पुवी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुपुवी। से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुव्वाणुपुठवी-एगसमयट्टिइए, दुसमयट्टिइए, तिसमयट्रिइए जाव दससमयटिइए संखिजसमयटिइए असंखिजसमयट्ठिइए से तं पुठवाणुपुवी। से किं तं पच्छाणुपुत्वी ? पच्छाणुपुव्वीअसंखिजसमयदिइए जाव एगसमयट्टिइए। से तं पच्छाणुपुवी। से किं तं अणाणुपुची? अणाणुपुवी-एयाए चैव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखिजगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो, से तं अणाणुपुवी। से तं ओवणिहिया कालाणुपुत्वी। से तं कालाणुपुष्टी सू०१३७॥ . छाया-अथ का सा औपनिधिकी कालानुपूर्वी ? औपनिधिकी कालानुपूर्वी त्रिविधा प्रसप्ता, तद्यथा-पूर्वानुपूर्वी पचानुपूर्वी अनानुपूर्वी । अथ का सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानुपूर्वी-समयः आवलिका मानः प्राणः स्तोकः लचः महतः अहोरात्र पक्ष: मासः ऋतुः अयनं संवत्सरः युगं वर्षशतं वर्षसहस्रं वर्षशतसहस्रं पूर्वाय पूर्व अटिताङ्ग त्रुटितम् अटटाइम् अटटम् अववाङ्गम् अववम् हुहुकाऊं हुहुकम् उत्पलाङ्गम् उत्पलं पपाझं पमं, नलिना नलिनम् अर्थनिपूरानम् अर्थनिपूरम् अयुताङ्गम् अयुतं नयुतानं नयुतं प्रयुतानं प्रयुतं चूलिका चूलिका शीर्षप्रहेलिकाहं शीर्षप्रहेलिका पल्योपम सागरोपमम् अवसर्पिणी उत्सर्पिणी पुद्गलपरिवर्तः अतीताद्धा अनागतादा सर्वाद्धा। सैषा पूर्वानुपूर्वी । अथ का सा पत्रानुपूर्वी ? पक्षानुपूर्वी-सादा अनागताद्धा For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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